ॐ श्री महापुरुष भगवान का उद्देश्य क्या था?

आनन्दयोगी जी आनन्दमय अवतारी महापुरुष जिन्होंने पृथ्वी पर जन्म लेकर लोगों को कुछ सन्देश देना चाहा, जिसे धारण कर अपने साथ-साथ समाज और इस संसार का कल्याण किया जा सकता है।

ॐ श्री महापुरुष भगवान का उद्देश्य क्या था?
Anand yogi ji- bhagwan ka Uddeshya

ॐ आनन्दमय ॐ शान्तिमय

ॐ श्री महापुरुष भगवान का उद्देश्य क्या था?

पाखण्ड, रूढ़िवादियों के ज्ञान का नाश करना और नर-नारी, बालक-बालिकाओं को ॐ आनन्दमय ॐ शान्तिमय प्रभु पिता जी के ध्यानयोग, ज्ञान-योग और सेवायोग द्वारा परम-प्रेमी श्रद्धालू आज्ञाकारी बनाना।

बालक-बालिकायें, युवा, नर-नारी।

ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के हैं सभी अधिकारी।

एवं बालक, वृद्ध, युवा, नर-नारी।

सत्संग करने के हैं सभी अधिकारी।।

परन्तु गीता क्या कहती है !

रागी-द्वेषी, निन्दक, बालक, बृद्ध, युवा, नर-नारी।

सत्संग और ब्रह्मज्ञान के नहीं हैं अधिकारी।।

श्री गीता अ०१८ श्लोक ६७।

भारत भाग्य विधाता छात्रा-छात्राओं के भाग्य को जगाने के लिये श्री महापुरुष भगवान शुरू में स्वयं विद्यालयों में जाते थे और छात्र-छात्राओं के प्रति विशेष महत्वपूर्ण उत्साहित करने वाली वाणी के द्वारा उनके परम-हित के लिये ज्ञान देते थे और योग-सिद्ध महामंत्र ॐ आनन्दमय ॐ शान्तिमय का प्रभाव बताते हुये सदा-सर्वदा प्रत्येक क्रिया करते हुये जपते रहने की प्रेरणा देते थे। आज भी उस समय लेखनी संग्रहालय में है।

श्री विश्वशान्ति ग्रन्थ भाग-१ में श्री ज्ञानामृत में छात्र-छात्राओं के प्रति विशेष कथन किया है कि बालक-बालिकाओं का हृदय शुद्ध होता है, उनमें अज्ञान-विमोहित मनुष्यों के सदृश राजसी-तामसी आचरणों के जटिल संस्कार नहीं होते। इस कारण उन्हें विशेष-त्याग नहीं करना पड़ता, केवल आवश्यकता है। श्री समाधिमग्न ब्रह्म-दर्शी महापुरुषों के संग की। हाँ ! बड़े होने पर असुर मनुष्यों के दर्शन से अथवा विपरीत शिक्षा के प्रभाव से त्याग करने योग्य भाव-आचरणों को ग्रहण करने में लोभ हो जाता है और भगवत विधान के अनुकूल ग्रहण करने योग्य भाव-आचरणों में भय हो जाता है। इसका नाम हैश्रद्धा-अश्रद्धा।

गम्भीरता पूर्वक विचार करें कि श्री मानव भाग्य विधाता श्री ग्रन्थ तो विशेष रूप से छात्र-छात्राओं के लिये प्रकाशन हुआ। श्री मानव भाग्य विधाता ग्रन्थ के प्रथम कवर-पृष्ठ पर श्री महापुरुष भगवान के विग्रह के नीचे स्पष्ट लिखा है कि

स्कूल कॉलेजों के सुधार का नुसखा।

छात्र-छात्राओं को अवश्य पढ़ावे वे बुद्धिमान बनेंगे।।

अब हमें विशेष सावधान रहने की आवश्यकता है। जब मानव दिमाग के विशेषज्ञ श्री ब्रह्मवेत्ता श्री महापुरुष भगवान का छात्र-छात्राओं के प्रति ऐसा भाव है, फिर हम अपने रागी-द्वेष भाव से उन्हें निरुत्साहित करें, तो फिर प्रभु पिताजी के दण्ड चक्र से वचना सम्भव नहीं।

श्री गीता शास्त्र के योगेश्वर भगवान का मानव मण्डल के प्रति क्या आदेश है।

श्री गीता अ०९ श्लोक ३३ में

इसलिये मेरी शरण होकर परम गति की प्राप्ति के लिये तुम सुख रहित क्षणभंगुर इस मनुष्य शरीर को प्राप्त कर निरन्तर मेरा ही भजन करो। इसके विपरीत शिक्षा देने वालों को आसुरी प्रकृति कथन किया है। अ०७ श्लोक १५ अ०९ श्लोक १।

राज्य विदान में अत्याचारी, अपराधियों का संग करने वालों को भी अपराधी और दण्डनीय समझा जाता है। इसी प्रकार ॐ आनन्दमय प्रभु पिताजी के विधान में भी विपरीत स्वेच्छाचारी मनुष्यों का संग-सेवा करने वाले भी ॐ आनन्दमय प्रभु पिता जी के विधान में दण्डनीय होते हैं। इसलिये गुण-विद्या के प्रथम पाठ में सावधान किया है कि अज्ञान विमोहित कामनाओं से तपायमान चिन्तित क्रोधित मनुष्यों के आदर्श व आदेशों में अश्रद्धा रहित उपराम रहना। अत: श्री सच्ची प्रेम भक्ति के आदेश के १४वें मंत्र में सावधान किया है। ॐ शान्तिमय