Ham Satsang Kyon Karate Hain

जीवन में हमलोगों को सत्संग क्यों करने चाहिए, सत्संग का हमारे जीवन में कितनी महत्ता है और इससे हमारा किस तरह उद्धार हो सकता है।

Ham Satsang Kyon Karate Hain
Satsang ka mahatva

हम सत्संग क्यों करते हैं?

          आनन्द लता बहन जी

अभी हमें जीविकोपार्जन हेतु अपने को तैयार करना है। फिर जीविकोपार्जन करना है। और उसके बाद सांसारिक व पारिवारिक दायित्वों का निर्वाह करना है। अत: सत्संग कब करें और क्यों करें?

यह साधारण मनुष्यों का उत्तर है। परन्तु महापुरुष भगवान द्वारा चलाये गये दिव्य सत्संग के अनुरागी भक्तों के उत्तर इससे भिन्न हैं। उन्हें उच्चारण करने की पूजा है

सत्संग हमें सन्मार्ग का दर्शन कराता है। सत्संग हमें सत्य महापुरुषों के दिव्य ज्ञान और उनके आचरण का ज्ञान देता है। सत्संग से हमें वह प्रेरणा मिलती है कि अपनी जीवन यात्रा चलाने के लिए हमें किन बातों का त्याग करना चाहिये और किन बातों को ग्रहण करना चाहिये। सांसारिक राजस तामस विचार मन में डेरा डाले रहते हैं। उन्हें हटाकर सात्विक भाव आचरण अपनाने के लिए सत्संग करते हैं। राग द्वेषादि का नाश होकर अन्त:करण शुद्ध हो जाता है। यही सत्संग का लाभ है। योगाचार्य ॐ श्री गुरु भगवान के अनन्य प्रेमी भक्तों का दर्शन श्रवण और संग प्राप्त होता है, इस कारण सत्संग में जाने की अभिलाषा बनी रहती है। सत्संग में संयम सेवा का ज्ञान बना रहता है और कर्तव्य-अकर्तव्य का बोध होता है। एक और प्रेमी ने लिखा है कि हम सत्संग इसलिये करते हैं कि ॐ आनन्दमय भगवान जी की दया के पात्र बनकर उनकी आज्ञाओं का पूर्ण रूप से दृढ़ संकल्प के साथ पालन करते हुए निष्काम भाव पूर्वक हमें आनन्द और भक्ति मिले एवं लगातार भगवद् चिन्तन होता रहे।

हम सत्संग क्यों करते हैं, इस विषय में एक छोटी बालिका ने लिखा कि हम अच्छी-अच्छी बातें सीखकर अच्छा आचरण करने लगे, इस प्रकार अपने सुधार के लिए सत्संग करते हैं। एक और प्रेमी लिखते हैं कि अपने जीवन को सफल और सुखमय बनाने के लिए सत्संग करते हैं। जीवन सत्संग से ही सार्थक बनता है।

इस प्रकार सभी भगवद् भक्त सत्संग के महत्व को समझ रहे हैं और भी भगवत् भक्तों ने लगभग एक जैसे विचार ही व्यक्त किये कि सत्संग से मनन विचार पूर्वक धारण करने योग्य ज्ञान उच्चारण किया जाता है। जब तक चित्त अशान्त है, तब तक किसी परिस्थिति में वास्तविक सुख नहीं हो सकता। गीता में भी भगवान बताते हैं, जो सारी कामना छोड़ चुका है। प्राणी पदार्थों में ममता से रहित है वही शान्ति प्राप्त कर सकता है। और इसके लिए सत्संग में आना जरूरी है। कामना की पूर्ति में सुख नहीं। कामना वाला मनुष्य निरन्तर अभाव की आग में जलता रहता है। कामना पूर्ति में ही लगा रहता है। पूर्ति ने होने पर क्रोध की ज्वाला से जलता है। क्रोधी मनुष्य अपने पर और दूसरों पर भी घातक प्रहार कर बैठता है। सत्संग में निरंतर आगे आने वाला मनुष्य कम से कम खतरनाक या घातक नहीं हो सकता।

सत्यता पूर्वक शुद्ध व्यवहार से द्रव्य की और उसके अन्न से आहार की तथा यथायोग्य वर्ताव से आचरण की और जल मृत्तिकादि से शरीर की शुद्धि को बाहर की शुद्धि कहते हैं। तथा राग द्वेष और कपट आदि का नाश होकर अन्त:करण का स्वच्छ हो जाना भीतर की शुद्धि कही जाती है।

इसलिए कुसंग से बचना होगा और आजीवन सत्संग करना होगा। ॐ आनन्दमय भगवान में जो अरूचि पैदा करने वाले हैं, वह सब कुसंग है। श्री महापुरुष देव के आदेशानुसार समस्त कर्म करते हुए भगवत् कृपा से जो धन-जन-यश-मान आदि की प्राप्ति हो उसमें ममता प्रेम और अहंकार के भावों का त्याग करते रहने से वह सुख शान्ति होने का विधान है। ध्यान समाधि के आचार्य परम् सुहृद ॐ श्री गुरू देव भगवान के आदेशानुसार संयम सेवा स्मरण सादगी जप ध्यान सत्संग स्वाध्याय आदि दिमागी रोग दमनकारी दिव्य औषधियों के सेवन में हृदय से आदर और श्रद्धा होनी चाहिये। ॐ श्री प्रभु पिता के दरबार में इसकी ही कीमत है। श्री इष्ट ग्रन्थों में प्रकाशित प्रभु पिता के विधान को जितने प्रतिशत आदर दिया जाता है उतना उतना ही दिमागी शान्ति और आत्मबल का विकास होता है। फिर प्रभु पिता जी तो अकारण ही दयामय हैं समय पर अपनी कृपा शक्ति का परिचय देते रहते हैं। प्रभु पिता के नाम रूप का स्मरण आनन्द दायक है और विस्मरण दुखदायक है। जो भक्त परम श्रद्धा और प्रेममयी विशुद्ध भक्ति से अपने हृदय को भरकर सत्संग में आते हैं वे ही भगवद् कृपा का अनुभव कर पाते हैं। वे ही भगवान के श्रेष्ठ भक्तों को आदर्श मानकर दैवी गुणों को अपनाते हैं और वे ही श्रद्धा भक्ति पूर्वक इष्ट ग्रन्थों के ज्ञान को भी धारण करते हैं।

आज हम सब मिलकर शुद्ध मन से करिष्ये वचन तव का संकल्प करें। संशय रहित होकर हम आपकी आज्ञा पालन करेंगे।

          करिष्ये वचनं तव

              करिष्ये वचनं तव

                   करिष्ये वचनं तव

                            ॐ शान्तिमय