बेतवा दर्शन- Betava Darshan Hindi Kahani

Ajay Kumar Pandey Ki Khubsurat Kahani 'Betava Darshan'

बेतवा दर्शन- Betava Darshan Hindi Kahani
'Betava Darshan' Hindi Kahani by Ajay Kumar Pandey

बेतवा दर्शन (Betawa Darshan)

-‘Betava Darshan’ Hindi Kahani by Ajay Kumar Pandey

राजकली प्लेटफार्म पर बैठी बार-बार मेन गेट की तऱफ देखती जा रही थी। मन में सोच रही थी शायद दीपा को अपनी भूल का एहसास हो, हमसे अपनी भूल का पछतावा करने आये। अगर आयेगी तो उसे मा़फ कर दूँगी, बेटी है।

एनाउन्सर ने सूचना दी बुन्देलखण्ड जल्द ही प्लेटफार्म नम्बर आठ पर पहुँचने वाली है। दादी गाड़ी आ रही है बैग उठाते हुये रेनू ने कहा

अभी तुम्हारी मम्मी नहीं आई।

छुट्टी न मिली होगी या कोई केश आ गया होगा। आपकी सीट कम्फर्म है रिजर्वेशन है काहे की परेशानी मम्मी नहीं आई तो क्या मैं तो हूँ न बैठा दूँगी। सारा सामान ठीक से रखवा दूँगी। रात भर सफर है सोते हुये जाना है सुबह गाड़ी झाँसी पहुँच ही जायेगी। वहाँ पर मामा लोग मिल जायेंगे फोन तो है ही कोई परेशानी होगी तो हम लोग बात करते ही रहेंगे। गाड़ी छूटते ही मामा को मैं ़खबर कर दूँगी। रेनू ने कहा।

बात करते करते गाड़ी प्लेटफार्म पर आकर खड़ी हो गई। राजकली की एस टू में बर्थ नम्बर छै नीचे की सीट रिजर्व थी कोई बहुत ़ज्यादा समान भी नहीं था, एक छोटा सा बैग उसमें दो-तीन जोड़ा साड़ी ब्लाउ़ज, तीन-चार ज्ञानवर्द्धक धार्मिक छोटी-छोटी पुस्तकें एक छोटा-सा एलबम, साबुन, मञ्जन, तौलिया, एक चद्दर बिछाने का एक चद्दर ओढ़ने का तथा एक पालिथिन का बैग जिसमें रास्ते के लिये कुछ थोड़ा-सा नास्ते का टिफिन, एक पानी की बोतल, बस इतना सामान जितना राजकली आराम से लेकर चल सके उन्हें चढ़ने उतरने में कोई परेशानी न हो। रेनू ने सहारा देकर राजकली को उनकी सीट तक ले जाकर बैठा दिया। चद्दर निकाल कर बिछा दिया। दादी आराम से लेट जायें गाड़ी बीस मिनट रुकेगी तब तक मम्मी आ जाती है तो ठीक है नहीं तो मैं हूँ कोई परेशानी नहीं होगी। मैं नीचे हूँ वैसे मम्मी को मालूम है। कहकर रेनू नीचे उतर गई। परन्तु राजकली की नीगाहें बार बार खिड़की से प्लेटफार्म पर चली जाती और वह अपनी लड़की को देखने का प्रयास करती गाड़ी के रुकने का समय पूरा हो गया, सिगनल हरा हो गया लेकिन राजकली की लड़की नहीं दिखी धीरे-धीरे गाड़ी रेंगने लगी, लड़की के आने की आश लिये राजकली व्यग्र दिखी। रेनू ने दौड़ते हुये दादी प्रणाम मम्मी तो नहीं आ सकी, अपना ख्याल रखना। पहुँचते ही फोन करना गाड़ी ते़ज हो गई, रेनू पीछे हो गई गाड़ी ने प्लेटफार्म छोड़ दिया अपने गंतव्य के लिये दौड़ने लगी। राजकली की आँखें अभी तक जो खोजती थी वह उन्हें नहीं मिला मायूस होकर अपनी सीट पर विछी चद्दर की सिलवटें ठीक की चप्पल उतार कर खुली खिड़की से झाँकने लगी।

मध्य प्रदेश के जिला दमोह में एक छोटा सा गाँव शिवपुर उसी गाँव में पं० दीन दयाल शर्मा का घर जो संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे। दूर दूर तक उनकी मर्यादा थी। उनके पूर्वज कभी झाँसी के राजा के राज पुरोहित हुआ करते थे। बाद में आकर उसी गाँव में बस गये उनके तीन लड़के एक लड़की थी। पण्डित जी ने लड़कों को जबलपुर में रेशमी कपड़ों का कारोबार करा दिया था। उनका एक मकान जबलपुर में भी था सारे बच्चे वही जबलपुर में ही रहते थे। यहाँ गाँव में पण्डित जी तथा उनकी पत्नी ही रहते थे।

शर्मा जी संस्कृत के अच्छे विद्वान थे पण्डिताई भी करते थे अच्छीr जजमानी भी जिससे उन्हें अच्छी आमदनी हो जाती थी। खेती बारी भी थी उनका कारोबार एक छोटे-मोटे जमींदार जैसा था। पण्डित जी खाने-पीने, कपड़े आदि के बड़े शौ़कीन थे। उनकी सभी उंगलियों में सोने की रत्न जड़ित अंगूठियाँ तथा गले में सोने की मोटी दो तोले की जंजीर, माथे पर मलयागिरि चन्दन का गोला टीका शरीर पर रेशम का सुन्दर कुर्ता बड़ा अच्छा लगता था, इलाके में वे जहाँ भी जाते लोग उन्हें बड़ा आदर, सम्मान देते उनकी बातों को लोग विशेष महत्व देते। वैसे पण्डित जी का स्वभाव बड़ा ही मृदुल मिलन-सार एवं परोपकारी था। उन्होंने अपने तीनों लड़कों की शादी कर दिया था सब अपने परिवार सहित जबलपुर में रहते थे। लड़की की शादी झाँसी के पास रामपुर गाँव में जो बेतवा के किनारे बसा था पण्डित राम नरेश बाजपेयी के लड़के श्याम सुन्दर से कर दिया था वे भी उस क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। पण्डित जी ने अपनी लड़की की शादी में दस किलो चाँदी, दस तोला सोना दिया था। उस समय इतनी बड़ी दहेज वाली शादी कोई नहीं किया था। शर्मा जी हर तरह से सम्पन्न थे, धन था तो उसी तरह उन्होंने दान भी दिया।

 राजकली पण्डित दीन दयाल शर्मा की एकलौती लड़की थी। ब्याह कर अपनी ससुराल चली गई। शर्मा जी उनकी पत्नी अकेले हो गये। राजकली भी अपने ससुराल में बड़े आनन्द से रहने लगी। यहाँ पर भी कोई बहुत बड़ा परिवार नहीं था। एक ननद, सास-ससुर तथा अकेला पति बस इतने लोग बड़ी प्रसन्नता से दिन बीत रहे थे कि अचानक एक दिन गाँव में डकैतों ने धावा बोल दिया गाँव वालों ने सामना किया जिसमें बीस लोगों की जानें गईं। घर का सारा कीमती सामान गहना, रुपया आदि उठा ले गये। इस घटना ने राजकली को तोड़ दिया उसने उस गाँव को छोड़ने का फैसला कर लिया। अपने पति को साथ लेकर जबलपुर चली आई गाँव की सारी खेती-बारी, बटाई पर उठा दिया। राजकली का पति श्याम सुन्दर पढ़ा लिखा था, जबलपुर आने पर उसने रेलवे विभाग में नौकरी कर ली यहाँ रेलवे का मकान भी मिल गया, यहाँ पर भी धीरे-धीरे राजकली की जीवन गाड़ी सुचारुरूप से चलने लगी। यहाँ पर राजकली को दो लड़के, एक लड़की पैदा हुई, उसके भाई लोग भी यहीं रहते थे इसलिये कोई परेशानी नहीं हुई। राजकली का बड़ा लड़का जब बड़ा हुआ तो वह गाँव में जाकर रहने लगा अपनी खेती बारी देखने लगा वहीँ गाँव के पास उसकी शादी भी हो गई। राजकली के पास उसका छोटा लड़का, लड़की और पति थे। सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन श्याम सुन्दर की तबियत ज्यादा खराब हुई। अस्पताल ले जाते समय मृत्यु हो गई। उन्हें लीवर सिरोसिस हो गया था। पहले पता नहीं चला जब पता चली तो वह बीमारी अपना काम कर चुकी थी। उस समय पति की असामयिक मृत्यु से राजकली के ऊपर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। उस समय बड़ी कच्ची गृहस्थी थी। छोटा लड़का दस वर्ष का था लड़की सोलह वर्ष की थी। लड़की इण्टरमीडिएट में पढ़ रही थी। उस लड़की का प्रेम पड़ोस में ही रह रहे एक यादव के लड़के के साथ हो गया। जब राजकली को पता चली तब तक बड़ी देर हो चुकी थी, राजकली की लड़की उस यादव के साथ घर छोड़कर जाकर शादी कर लिया। राजकली अकेली थी एक लड़का साथ रहता था वह भी बहुत छोटा, पति की मृत्यु के बाद रेलवे का पैसा भी नहीं मिला था। ऐसे मौके पर राजकली के भाईयों ने कुछ मदद तो की लेकिन उसकी लड़की के द्वारा किये गये कृत्य से वे लोग खुल कर सामने नहीं आये वह निसहाय हो गई थी। बड़ी भाग-दौड़ के बाद राजकली की पेंशन बन गई सेटलमेन्ट का भुगतान हो गया। नौकरी के लिये लड़के की उम्र नहीं हुई थी उसकी नौकरी के लिये छ: साल तक इन्त़जार करना पड़ा। इधर उसकी पुत्री दीपा जब से घर छोड़ कर गई थी तब से उसका कोई अता-पता नहीं था और कौन पता करता इस तरह का वह काम कर गई थी कि सबका सिर नीचा कर गई थी।

कार्तिक का महीना था। नर्मदा तट पर मेला लगा था। राजकली का छोटा लड़का राधेमोहन मेला देखने गया था। वहाँ पर उसने अपनी बहन दीपा को अकेले घूमते देखा मौका पाकर उसने दीपा को पुकारा। दीपा अपने भाई को देखकर उसे गले लगा कर रोने लगी। उसने उससे सारी कहानी तथा आपबीती बता दी कि उसने कितनी बड़ी भूल कर गई। उसने बताया कि वह जिस आदमी के साथ शादी की थी वह कितना मक्कार तथा स्वार्थी था। उसकी पहले से शादी हुई थी उसको उससे तीन बच्चे हैं। इस समय वह भी उसके प्रेम प्रपंच में पँâस कर पेट से है कह कर रोने लगी वह कही की नहीं रही, किसी को मुँह दिखाने लाय़क नहीं रह गई। अब उसके सामने केवल जान देने के सिवाय कोई रास्ता नहीं रह गया है। वैसे राधेमोहन उम्र में छोटा था लेकिन समझदार था उसने अपनी बहन दीपा को समझाया कि जीवन अमूल्य है इतना आसान नहीं जान दे देना। धैर्य से काम लो सब ठीक हो जायेगा। उसे समझा बुझाकर राधेमोहन दीपा को साथ लेकर अपनी माँ के पास आ गया। उसने बताया माँ तो माँ होती है वह अपने बच्चों की ़गलती को क्षमा कर देती है। वह हर हाल में अपने बच्चों का भला ही चाहती है।

दीपा को देखकर राजकली आग बबूला हो गई देखते ही उसे बुरा भला कहने लगी। दीपा चुपचाप माँ की डाँट सहती सुनती रही।

दीपा ने रोते हुये माँ से अपनी आप बीती सारी बातें बता दी और कहा माँ तुम चिन्ता न करो अँधेरा थोड़ा और होने दो मैं अपनी कहीं जाकर जान दे दूँगी। आप पर कोई बात नहीं आने दूँगी।

इतने सुनते ही माँ का गुस्सा गफूर हो गया वह दीपा को कमरे के अन्दर ले जाकर बैठाया उसे खाने को दिया जब दीपा आश्वस्त हो गई तो माँ उसको समझाने लगी। दीपा जब मैंने तुम्हारे भाग जाने की बदनामी को सह लिया तो तुझे मरता नहीं देख सकती जो हुआ वह चाहे भूल वस हुआ अथवा प्रारब्ध बस होना था सो हो गया भगवान की म़र्जी। कह कर एक लम्बी साँस ली और फिर कहा दीपा हौसला रख इस बच्चे को जन्म दो अब तो तेरी शादी होगी नहीं इसी के सहारे जीवन जी। तू पढ़ी लिखी है अपने लिये सहारा ढू़ँढ कोई नौकरी कर ले क्योंकि तुमने ऐसी भूल कर दिया है कि कोई तुझे सहारा नहीं देगा। इतना कह कर माँ चुप हो गई।

दीपा को आज पता चला कि माँ क्या होती है। बिलख कर रो पड़ी, माँ को गले लगाकर कहने लगी– ‘‘माँ अब मैं वही करुँगी जो तुम कहोगी।’’

उसी समय नर्स की ट्रेनिंग के लिये जगह निकली थी। जिसमें दो साल की ट्रेनिंग थी, दीपा ने फॉर्म भर दिया। उसने कुछ समय बाद एक पुत्री को जन्म दिया तब तक उसकी ट्रेनिंग का बुलावा आ गया। समय बीतते देर नहीं लगती दीपा की ट्रेनिंग पूरी हो गई जैसे ट्रेनिंग पूरी हुई उसी समय रेलवे विभाग में नर्स की जगह भी आ गई। समय बदलता है तो ऐसे ही, दीपा ने फॉर्म भर दिया, साल भर के अन्दर ही सेलेक्शन भी हो गया। दीपा के छोटे भाई की भी उम्र अठारह वर्ष पूरी हो गई थी। उसको भी अपने पिता की मृत्यु की अनुकम्पा पर नौकरी मिल गई। उसकी पोस्टिंग भोपाल में हो गई एक लड़की से उसका रिश्ता भी तय हो गया वह अपनी पत्नी सहित भोपाल में शिफ्ट हो गया। दीपा की पोस्टिंग इलाहाबाद में रेलवे अस्पताल में हो गई। अब राजकली फिर अकेली थी। बड़ा लड़का गाँव में, छोटा भोपाल में, लड़की इलाहाबाद अब वह कहाँ जाये। दीपा की लड़की छोटी थी तथा वह औरत जाति थी उसके सामने समस्या थी सो राजकली ने निर्णय लिया कि वह कुछ दिन बेटी दीपा के साथ इलाहाबाद में रहेगी इसलिये राजकली दीपा के साथ इलाहाबाद आ गई।

समय बीतता गया दीपा का भी प्रोमोशन होता गया अब रेनू सोलह वर्ष की हो गई उसने इण्टर पास कर लिया है एम.बी.ए. की पढ़ाई इन्दौर में कर रही है। पढ़ने में ते़ज है वही रेनू राजकली को स्टेशन पर छोड़ने आई थी।

रात के अँधेरे को चीरती हुई भोर की लालिमा के साथ बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस झाँसी के प्लेटफार्म नम्बर एक पर आकर खड़ी हो गई। राधेमोहन अपने बड़े भाई घनश्याम के साथ बोगी नम्बर एस-टू में जल्दी पहुँच कर सीट नं-छै पर हाजिर हो गये तब तक राजकली अपना चद्दर आदि तह कर लिया था। बेटों को देखकर उठ खड़ी हुई– ‘‘आ गये तुम लोग’’। हाँ, राधेश्याम और घनश्याम ने झुककर पैर छुआ। बैग सामान लेकर नीचे आ गये राजकली को सहारा दिया। स्टेशन के बाहर मारुती वैन खड़ी थी ले जाकर सामान बैग रख दिया। राजकली को चलने में तकलीफ हो रही थी। सो राधेश्याम ने बाँह पकड़ ली और पूछा– ‘‘मम्मी तबियत खराब है क्या?’’

नहीं अभी आधा घन्टा पहले से थोड़ा उलझन हो रही है हलका-हलका सीने में दर्द है।

किसी डॉक्टर को दिखाता चलूँ क्या, बेटे ने कहा।

नहीं रे, दीपा ने दवा दे रखा है

कहाँ है। राधे ने पूछा

बैग में एक डिब्बी है एक टिकिया लाओ खा लेती हूँ। ठीक हो जायेगी अक्सर स़फर में हो जाता है। राजकली ने कहा और जाकर मारुती में बैठ गई। कहा सीधे घर चलना रास्ते में बच्चों के लिये कुछ ले लेना।

रास्ते में कुछ देर खामोशी रही। राधे मोहन ने कहा मम्मी बिना प्रोग्राम के अचानक आने का मन बना दिया हम लोग कोई आ जाते तुम्हें ले आते। दीपा ने भी कुछ नहीं बताया शाम को रेनू का फोन आया था कि नानी बुन्देलखण्ड से जा रही हैं।

हाँ मैंने ही अचानक मन बना लिया था पचहत्तर वर्ष की हो गयी हूँ सोचा घर चलूँ।

कोई बात तो नहीं हुई मम्मी। राधेमोहन ने शंकालु मन से पूछा

नहीं

नहीं कोई बात तो है मम्मी

लड़के के बहुत जिद् करने पर राजकली ने कहा कि दस दिन पहले मेरी तबियत ज्यादा खराब हो गई थी। दीपा ने मेरी देखभाल के लिये एक नौकरानी रख दिया है। दीपा को समय नहीं है वैसे ईमानदार नौकर, नौकरानी नहीं मिलते और यदि मिलते हैं तो बड़ी मुश्किल से वह भी बड़े शहर में। जिस दिन वह आई थी उसे काम समझाने में मुझे स्नान करने में देरी हो गई थी। जिसकी व़जह से मैंने ठाकुर जी की देर से पूजा की उसी रात ठाकुर जी मेरे सपने में आकर कहने लगे थे। तुमने बहुत दिनों से बेतवा का दर्शन नहीं किया है पूस की पूर्णिमा को तुम्हारे गाँव के पास बेतवा पर मेला लगता है। हो आओ बच्चों से भी मिल आओ। न जाने उसी दिन से तुम लोगों की बड़ी याद आ रही थी। माँ हूँ दीपा से कहा तू भी चल वह नारा़ज हो गई। नौकरी की परेशानी बताई तो मैं चुप हो गई उसने कहा तबियत ठीक नहीं है तुम्हें बेतवा देखने-नहाने की बात सूझी है। इसीलिये वह स्टेशन तक छोड़ने भी नहीं आई। वह पागल है राधे घर पहुँच कर शाम मुझे बेतवा किनारे जरूर ले चलना। राजकली चुप हो गई।

राजकली अपनी लड़की की बात छुपा गई कि दीपा ने उस नौकरानी की तऱफदारी करके बुरा-भला कह कर घर से निकल जाने को कहा था।

क्यों नहीं मम्मी जरूर चलेंगे।

तब तक राजकली का गाँव आ गया घर पहुँच कर सारे बच्चे दादी आई। दादी आई, आकर घेर लिया। राजकली को बच्चे ले जाकर बैठक में बिठा दिये। राजकली की उलझन ते़ज हो गई। सारा बदन पसीना-पसीना सीने में असहनीय दर्द आँखों के सामने अँधेरा छा गया वह बेहोश होकर सो़फा पर लुढ़क गई जब तक घर के लोग समझ पाते राजकली की लीला समाप्त हो चुकी थी। घर के सभी लोग आवाक् रह गये। दिन के ग्यारह बजे थे बेतवा का श्मशान घाट तीन किलोमीटर दूर था। बेतवा दर्शन के लिये राजकली तैयार होने लगी परन्तु बेतवा का बहता जल रुका नहीं उसे जमुना से मिलकर गंगा के साथ चलकर सागर में समाहित होना है।

दीपा की बिना बाट जोहे बेतवा की धारा राजकली की राख को अपने साथ बहा ले गई। वह जहाँ से आई थी एक लम्बा स़फर तय कर चली गई। यह संसार किसका है, प्रश्न छोड़ गई।

-Ajay Kumar Pandey Ki Hindi Kahaniya 'Betava Darshan'