तुलसी विवाह मान्यता और कथा Tulsi marriage recognition and legend

तुलसी विवाह मान्यता और कथा Tulsi marriage recognition and legend
Tulsi Vivah ki Manyata aur Katha

तुलसी विवाह मान्यता और कथा

Tulsi marriage recognition and legend

पौराणिक मान्यता के अनुसार देव उठनी एकादशी की एक और महत्व है- तुलसी विवाह। देवउठनी एकादशी से तुलसी विवाह का क्या सम्बन्ध है, इसके पीछे बहुत ही महत्वपूर्ण कथा है। पुराणों के कथनानुसार जब भगवान नारायण चतुर्मास शयन के बाद देव उठनी एकादशी को जागते हैं तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। जिसमें तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की शादी की कथा है। इस एकादशी को इसलिए तुलसी और शालिग्राम की शादी को बड़े ही धूम-धाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। चूंकि नारायण इस दिन प्रात: ही जागते हैं, इसलिए तुलसी विवाह को देव जागरण के पवित्र मुहूर्त के स्वागत के समय ही आयोजन किया जाता है। तुलसी विवाह करने से मतलब है कि तुलसी के माध्यम से भगवान नारायण का आह्वाहन करना।

हमारे शास्त्रों में ऐसा विदित है कि जिन दम्पत्तियों के कन्या नहीं होती हैं, ऐसे लोग कम से कम जीवन एक बार तुलसी विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें। तुलसी का विवाह करने के लिए सबसे पहले इस देवउठनी एकादशी के दिन अपने सारे घर को स्वच्छ बनाकर आंगन में या आंगन न होने पर छत पर या घर के किसी कमरे में जो मध्य में हो, या एक कमरा होने पर कमरे के मध्य में एक चौक बनायें और उस चौक में भगवान नारायण के चरणों के चित्र चित्रित करें। इसके पीछे भी मान्यता है कि भगवान नारायण जब चतुर्मास से उठते हैं तो सबसे पहले उनके चरण ही धरती पर पड़ते हैं, इसीलिए उनके चरण को चित्रित करने का विधान है। इसके बाद एक ओखली में गेरू से चित्र बनायें, फिर उस पर फल, मिष्ठान, बेर, अच्छे पकवान, सिंघाड़े, गन्ना और अन्य ऋतुफल उस स्थान पर रखकर किसी स्वच्छ बर्तन या डलिया से उसे ढक दें। ओखली के पास एक घी का दीपक जलाकर रख दें। इसके बाद रात्रि के समय अपने सभी परिवार के साथ भगवान विष्णु के साथ-साथ सभी देवतागणों का आह्वाहन करके उनकी विधिवत पूजा-अर्चना करें और प्रात:काल भगवान को शंख, घंटा आदि बजाकर उनको जगायें। इस तरह तुलसी विवाह की भी देवउठनी एकादशी के दिन करने की मान्यता है।

-नन्द लाल सिंह “शाश्वत”