बोधयन्त: परस्परम् - भगवत् भक्ति का रहस्य तथा जप-यज्ञ का प्रभाव

जब तक हम ॐ श्री परमगुरू भगवान् द्वारा श्री गीता के अन्त में प्रकाशित सात श्रेणियों के गुण-ज्ञान का ग्रहण-त्याग नहीं करेंगे तब तक हमारा मन-बुद्धि पशु-पक्षियों के सदृश इन्द्रिय विषय जनित अनुकूलताओं और प्रतिकूलताओं के दण्ड से व्याकुल रहेगा।

बोधयन्त: परस्परम् - भगवत् भक्ति का रहस्य तथा जप-यज्ञ का प्रभाव
jap yagya ka prabhav

बोधयन्त: परस्परम्

भगवन् ! श्री गीता अ०१२ श्लोक ६ से २० तक प्रकाशित आत्मिक अमृत प्रदान करने वाले इष्ट नाम-रूप और गुण-ज्ञान को ग्रहण करना बुद्धिमता है। (धर्म्यामृतम् पर्युपासतेश्री गीता अ०१२ श्लोक २०) यह वैधानिक ब्रह्मवाक्य शुक्लपक्ष के चन्द्रमा के सदृश क्रमश: पूर्ण कलायुक्त बनाने वाले हैं। अत: उक्त इष्ट नाम-रूप और गुण-ज्ञान में प्रेम हो, अनुराग हो।

भगवन् ! श्री गीता अ०१६ से २० तक में में प्रकाशित आत्मिक विषदायक गुण-ज्ञान और नाम-रूप में प्रेम न करना सात्त्विक वीरता है। यह वैधानिक ब्रह्मवाक्य कृष्णपक्ष के चन्द्रमा के सदृश क्रमश: कलाहीन करने वाले हैं। (परिणाम में विषमिवश्री गीता अ०१८ श्लोक ३८) अत: उक्त गुण-ज्ञान और नाम-रूप से प्रेम न हो, वैराग्य हो, त्याग हो।

मुझे यह विश्वास हुआ है कि उपरोक्त ग्रहण-त्याग में ही जीवन की सार्थकता है, परन्तु यह ग्रहण-त्याग श्रद्धा के बल पर होता है।

भगवन् ! जब तक हम ॐ श्री परमगुरू भगवान् द्वारा श्री गीता के अन्त में प्रकाशित सात श्रेणियों के गुण-ज्ञान का ग्रहण-त्याग नहीं करेंगे तब तक हमारा मन-बुद्धि पशु-पक्षियों के सदृश इन्द्रिय विषय जनित अनुकूलताओं और प्रतिकूलताओं के दण्ड से व्याकुल रहेगा।

भगवन् ! श्री विश्वशान्ति आदि ग्रन्थ हमारे इष्ट हैं। इन इष्ट ग्रन्थों में प्रकाशित लाभ-हानि विषयक ज्ञान को असत्य बतलाने वाले स्वजन और अपना मन हमारे शत्रु हैं। उस शत्रु मन का दमन करते रहना और उन अश्रद्धालु स्वजनों से वैराग्य करते रहना अपना कर्त्तव्य है।

ॐ आनन्दमय सूत्र नामक ग्रन्थ के पृष्ठ ६३-६४ पर प्रकाशित ‘‘भगवत् भक्ति का रहस्य’’ तथा ‘‘जप-यज्ञ का प्रभाव’’ ॐ आनन्दमय अनुरागी भक्तों के लिये परम कल्याणकारी है। ॐ आनन्दमय सूत्र नामक ग्रन्थ के आवरण पृष्ठ-४ पर प्रकाशित ‘‘श्री दिव्य वाणी’’ के आदेशों को हम सब कोई साँगोपाँग अध्ययन करेंगें। यह ‘‘दिव्यवाणी’’ हमारे जीवन की नौका है। ॐ शान्तिमय।