प्रयागराज के 20 प्रमुख धार्मिक स्थल Major 20 religious places of Prayagraj

Es article mein prayagraj ke 20 dharmik sthalon ke bare mein bataya gaya hai, aur bhi dharmik sthal hain jinke bare mein agle lekh mein varnan karunga. Visit for Kumbh Mela Videos- www.youtube.com/lokparlok

प्रयागराज के 20 प्रमुख धार्मिक स्थल  Major 20 religious places of Prayagraj
Prayagraj Religious places by Nand lal Singh

प्रयागराज के प्रमुख धार्मिक स्थल

Major religious places of Prayagraj

  1. शंकराचार्य मठ  Shankaracharya Math– अलोपीबाग में अलोपशंकरी देवी मंदिर के सामने एक शिव मंदिर है। यही पर तपस्या के साक्षात प्रतिमूर्ति स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती का मठ है। स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद उनके शिष्य स्वामी विष्णुदेवानन्द सरस्वती तत्पश्चात उनके शिष्य शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती यहाँ निवास करते हैं।
  2. शंकर विमान मण्डपम् Shankar Viman Mandapam– संगम के तट पर त्रिवेणी बांध पर कांची कामकोटि पीठम् के शंकराचार्य स्वामी चंद्रशेखर सरस्वती की देखरेख में इसे बनाया गया है। इसे दक्षिण भारत के मंदिरों की शैली में निर्मित किया गया है जो अपने आप में अकेला ऐसा मंदिर है।
  3. बड़े हनुमान जी Bade hanuman Jee– यह मंदिर गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम तट पर त्रिवेणी बांध के नीचे स्थित है। यहाँ हनुमान जी लेटे हुए मुद्रा में हैं, कहा जाता है कि संजीवनी बुटी ले जाते समय कुछ समय के लिए यहाँ पर हनुमान जी विश्राम किये थे, इसलिए यहाँ हनुमान जी की मुर्ति लेटे हुए मुद्रा में स्थित है। अन्य कथाएं भी इसके संदर्भ में प्रचलित है।
  4. श्री तुलसीदास जी का बड़ा स्थान Shri Tulsidas ji ka Bada Sthan– यह वैष्णव सम्प्रदाय के साधकों की पूजा स्थली है। यह प्रयागराज के दारागंज में दक्षिणी छोर पर स्थित है। इसकी स्थापना गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन श्री देवमुरारी जी ने किया था।
  5. रामानन्दाचार्य मठ Ramanandcharya Math – यह मठ त्रिवेणी बांध के दक्षिणी किनारे पर किले से सटा हुआ है। श्री रामानन्दचार्य को उत्तर भारत के नेतृत्व का श्रेय प्राप्त है, ये रामभक्ति धारा के समर्थक थे और उत्तर भारत में रामभक्ति का खुब प्रचार-प्रसार किया था। आचार्य रामानन्द के याद में ही श्री रामानन्दाचार्य मठ का निर्माण हुआ था।
  6. जंगमबाड़ी मठ Jangambadi Math– यह स्थान दारागंज मोहल्ले में दशाश्वमेध घाट के पास है। यह वीरशैव मतावलंबियों का पवित्र स्थान है। वीरशैव मतावलंबियों की विशेषता है कि ये लोग अपने शरीर में सदैव शिवलिंग धारण किये रहते हैं। ऐसी मान्यता है कि वीरशैव मत के प्रतिपादक स्वयं भगवान शिव ही थे।
  7. शिवमठ और सिद्धेश्वर महादेव मंदिर Shivmath aur Siddheshwar Mahadev Mandir– अधिकांशत: मठ और मंदिर संगम तट के त्रिवेणी बांध या फिर दारागंज मोहल्ले में ही स्थित हैं। यह मठ और मंदिर भी दारागंज मोहल्ले में ही स्थित है। लगभग 160 साल पहले दक्षिण भारत के तिरूनलवेली जिले के वाहकुलम गाँव निवासी श्री वेंगुशिवन नाम दम्पत्ति ने अपनी सारी सम्पत्ति शिवमंदिर को समर्पित करने के लिए प्रयागराज आये थे, लेकिन यहाँ धार्मिक वातावरण उन्हें इतना पसन्द आ गया कि यही पर बसने का संकल्प ले लिया। यहाँ पर दक्षिण भारत के तीर्थयात्रियों के निवास के उद्देश्य से इस शिवमठ की स्थापना की, जहाँ पर आज भी दक्षिण भारत के तमाम तीर्थयात्री आते हैं और आश्रय पाते हैं।
  8. नागवासुकि मंदिर Nagvasuki Mandir- यह मंदिर दारागंज के बक्शी मोहल्ले में आता है। जो गंगा के तट पर है। पौराणिक कथाओं में नागवासुकि का बहुत बार वर्णन आता है। इस मंदिर के मध्य में नागवासुकि की प्राचीन मूर्ति विराजमान है और उनके दोनों ओर नाग-नागनियों के चार जोड़े उत्कीर्ण हैं। मान्यता यह है कि इस मंदिर में पूजा-पाठ करने से जिनके ऊपर काल-सर्पदोष होता है, उनसे मुक्ति मिल जाती है।
  9. शक्तिपीठ Shaktipith–
  1.  अलोपशंकरी देवी Alopshankari Devi– इस मंदिर की विशेषता है कि इस मंदिर में किसी की मूर्ति नहीं है। यह अपने आप में अनूठा मंदिर है। इस मंदिर में एक चौकोर चबूतरा है जिसके मध्य में एक कुण्ड बना हुआ है और उस कुण्ड में जल भरा रहता है। इस कुण्ड के ऊपर छत से लटका हुआ एक झूला है, इस मंदिर में इसी झूले और कुण्ड की पूजा की जाती है। इस मंदिर का बहुत बड़ा महत्व है, व्यक्ति हर मनोकामना पूर्ण होती है। यह महानिर्वाणी पंचायती अखाड़े के अधीन है। यह मंदिर संगम अलोपीबाग में स्थित है जो संगम जाने वाले मार्ग के निकट पड़ता है।
  2.  माँ ललिता देवी Man Lalita Devi-  ललिता पीठ मंदिर प्रयागराज के मीरापुर मोहल्ले में स्थित है जिसका वर्णन पुराणों में मिलता है। मत्स्य पुराण, ब्रह्मपुराण, कुब्जिका तंत्र, रूद्रयामल तंत्र, तंत्र चूड़ामणि, शाक्तानन्द तरंगिणी, गन्धर्वतंत्र और देवी भागवत में इसका वर्णन मिलता है। कुल 51 शक्ति पीठों में ललिता पीठ के बारे में एक कथा पायी जाती है जिसमें सती की उंगलियों के गिरने वाली कथा पायी जाती है। यह अत्यन्त प्राचीन मंदिर है।
  3.  कल्याणी देवी Kalyani Devi– यह मंदिर प्रयागराज के कल्याणी देवी मोहल्ले में आता है। मत्स्य पुराण के 108 वें अध्याय में कल्याणी देवी का वर्णन पाया जाता है। अलोपशंकरी देवी के सन्दर्भ में 51 पीठों की कथा क्रम में माँ कल्याणी का भी वर्णन आता है। पौराणिक कथा के अनुसार कल्याणी देवी और ललिता देवी एक ही हैं लेकिन यहाँ पर अलग-अलग अस्तित्व मिलता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के तृतीय खण्ड के प्रसंग में कथित है कि महर्षि याज्ञवल्क्य ने प्रयागराज में माँ भगवती की आराधना करके माँ कल्याणी देवी की 32 अंगुल की प्रतिमा की स्थापना की थी।
  1. भारद्वाज आश्रम Bhardwaj Ashram– यह आश्रम प्रयागराज में कर्नलगंज मोहल्ले में आनन्द भवन के समीप बालसन चौराहे पर स्थित है, तत्कालीन शासन ने इस आश्रम के बाहर भारद्वाज मुनि की विशाल मूर्ति स्थापित की है जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। भरद्वाज जी की चर्चा श्री राम राम के वनगमन के समय में मिलती है, जब श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास के दौरान वनगमन के लिए निकले थे तो प्रयागराज आने पर उनके आश्रम भरद्वाज मुनि के दर्शन के लिए पहुँचे थे। मान्यता यह है कि पहले गंगा जी यही से बहती थी, लेकिन शहर के विस्तार के कारण धीरे-धीरे दूर हो गयीं। ऐसा कहा जाता है कि प्रयागराज आने पर जो लोग भरद्वाज आश्रम नहीं जाते, उनकी तीर्थ यात्रा अधूरी मानी जाती है। वर्तमान में भारद्वाज आश्रम एक पार्क का भी रूप ले चूका है, जहाँ प्रतिदिन हजारों लोग यहाँ आते रहते हैं।
  2. कोटितीर्थ Kotitirth– यह प्रयागराज के शिवकुटी मोहल्ले में आता है। यह गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित है। वस्तुत: प्रयागराज के गंगा के दक्षिणी तट स्थित तीर्थ को ही कोटितीर्थ कहा गया है। पद्मपुराण में इसका वर्णन मिलता है कि यहाँ कोटि-कोटि तीर्थों का निवास है और इस कोटितीर्थ के देवता भगवान शिव को माना गया है।
  3. श्री हनुमत निकेतन Shri Hanumat niketan– प्रयागराज के सिविल लाइन्स में रोडवेज के पास यह प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में हनुमान जी विशाल मूर्ति है। श्री हनुमान जी के दक्षिण में श्रीराम, लक्ष्मण व जानकी और उत्तर भाग में सिंह वाहिनी दुर्गा की मूर्ति लगी हुई है। मंदिर परिसर में भगवान शिव के कई लिंगों की स्थापना भी की गई है। इस मंदिर के संस्थापक ब्रह्मचारी श्री रामलोचन जी थे जिन्होंने इस मंदिर को राष्ट्र को समर्पित कर दिया था।
  4. सरस्वती कूप Sarswati Kup– प्रयागराज के संगम क्षेत्र में किले के अन्दर यह सरस्वती कूप स्थित है। ऐसी मान्यता है कि अदृश्य सरस्वती इस कूप में दृश्य हैं। इस पवित्र कूप का वर्णन वाराह पुराण और मत्स्य पुराण मिलता है। इस कूप में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है ऐसी मान्यता है।
  5. समुद्रकूप Samudrakup– यह कूप प्रयागराज के झूँसी में स्थित है। झूँसी को उस समय प्रतिष्ठानपुरी के नाम से जाना जाता था। यह कूप नरेश समुद्र गुप्त ने बनवाया था, इसलिए इसका नाम समुद्र कूप है। यद्पि कि इसकी मान्यता समुद्र से मानी गयी है क्योंकि इसका वर्णन मत्स्य पुराण में मिलता है। जो अति प्राचीन है।
  6. अक्षय वट Akshyawat– इसके पीछे पौराणिक मान्यता यह है कि इसका नाश कभी नहीं होता, प्रलय के समय भी अक्षयवट नहीं डूबता है। पद्म पुराण में इसके बारे में वर्णन मिलता है। इस पुराण में इस अक्षयवट को एक अन्य नाम श्याम वट के नाम से भी जाना जाता है। अक्षयवट का वर्णन पद्म पुराण के साथ-साथ ऋग्वेद में भी मिलता है। ह्वेनसांग ने भी अक्षयवट की महत्व के बारे में वर्णन किया है।
  7. मनकामेश्वर तीर्थ Mankameshwar Tirth– प्रयागराज के यमुना के तट पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव का है। यह प्रयागराज के प्रमुख तीर्थों में से एक है। इस मंदिर में भगवान शिव की अराधना करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती है, ऐसी मान्यता है।
  8. पातालपुरी मंदिर Patalpuri Mandir– यह मंदिर प्रयागराज के संगम के किनारे स्थित किले पूर्वी भाग में तहखाने में स्थित है। इसका निर्माण इतना प्राचीन है कि इसके निर्माण के बारे में कहीं वर्णन नहीं मिलता कि कब कराया गया था। इसके बारे में ऐसी मान्यता है कि यहाँ जो भी लोग पैसा-रूपया चढ़ाता है वह स्वर्ग चला जाता है। इस मंदिर के परिसर में एक विशाल वट वृक्ष है जिसकी शाखाएं परिसर के दूर-दूर तक फैली हुई हैं। यह मंदिर परिसर सेना के अधीन है लेकिन प्रत्येक वर्ष माघ के महिने में आम जनता के लिए खोल दिया जाता है। इस मंदिर में गणेश, गोरखनाथ, नरसिंह, शिवलिंग समेत कुल 46 मूर्तियाँ हैं। इस मंदिर की लम्बाई 84 फीट और चौड़ाई 46.5 फीट है।
  9. श्रृंगवेरपुर Shringwerpur – यह पवित्र स्थान प्रयागराज शहर से 35 किलोमीटर दूर पूर्वी दिशा में गंगा के तट पर स्थित है। इसका बहुत बड़ा पौराणिक महत्व है। इसका नाम प्रसिद्ध महर्षि कश्यप के पुत्र ऋषि विभाण्डक के पुत्र श्रृंगीऋषि के नाम पर पड़ा है। श्रृंगी ऋषि बहुत तेजस्वी महात्मा थे जिनकी कथा बाल्मीकि कृत रामायण और रामचरित मानस में भी आती है। श्री राम के वनगमन के समय जो श्री राम और केवट का संवाद था वह यहीं का संवाद माना जाता है। इस स्थान पर गंगा के कुल पाँच घाट हैं- गऊ घाट, मौनीघाट, श्रृंगवेरपुर घाट, रामचौरा घाट और कुरई घाट। यहाँ पर लगभग सभी महान महात्माओं, ऋषिओं-मुनियों का आगमन हुआ था, इसलिए यह स्थान अति पावन है।
  10. पंचकोसी परिक्रमा Panchkosi parikrama– प्रयागराज में पंचकोसी का बहुत बड़ा महत्व है, ऐसी पौराणिक मान्यता है कि प्रत्येक वर्ष माघ के महिने में समस्त देवताओं का आगमन प्रयागराज में होता है। पद्म पुराण में प्रयागराज का क्षेत्र उस समय पाँच कोस तक बताया गया है। यह पंचकोसी परिक्रमा तीर्थ, कुण्ड, आश्रम, कूप, देवता, अष्टनायक, तीनों वेदियां और द्वादश माधवों का दर्शन करते हुए पूरे क्षेत्र की परिक्रमा की जाती है।
  11. प्रयागराज के पवित्र घाट Prayagraj Ke Pavitra Ghat– दशाश्वमेध घाट, राम घाट, त्रिवेणी संगम घाट, सरस्वती घाट, मनकामेश्वर घाट, अरैल घाट, गऊ घाट, बलुआ घाट, ककरहा घाट, शंकर घाट और रसूलाबाद घाट। 

इसके अतिरिक्त और भी बहुत से प्रयागराज के धार्मिक स्थल जिनके बारे में अगले लेख में वर्णन करूँगा। और अधिक जानकारी और कुम्भ मेला पर विडियो देखने के लिए मेरे YouTube Channel "Lok Parlok" पर जा सकते हैं जिसका लिंक है- www.youtube.com/lokparlok

-नन्द लाल सिहं “शाश्वत”