Kagaj Ki Gawahi A Hindi Story By Ajay Kumar Pandey

Ajay Kumar Pandey Ki Kahani- Kagaj Ki Gawahi

Kagaj Ki Gawahi A Hindi Story By Ajay Kumar Pandey
Kagaj Ki Gawahi by Ajay Kumar Pandey

का़ग़ज की गवाही (Kagaj Ki Gawahi)

-‘Kagaj Ki Gavahi’ hindi story by Ajay Kumar Pandey

बड़े बाबू ये राधा देवी हैं, आपसे मिलने आई हैं। राम प्रकाश एक औरत को साथ लिये संजय बाबू के पास आकर खड़ा हो  गया।

चश्मा ठीक करते हुए बड़े बाबू ने पूछाक्या काम है?

राम प्रकाश कुछ बोलता उसके पहले ही वह औरत बीच में ही बोल पड़ी साहब मैं राधा देवी हूँ राम पाल की औरत। कौनव हमरे नाम से चेक आवा है काअ?

कौन राम पाल? बड़े बाबू कुछ सोचते हुए पूछ बैठे।

औरत कुछ कहती इसके पहले ही राम प्रकाश बोल पड़ा, अरे बाबू रामपाल ब्लैकस्मिथ। वह २००६ में सेवामुक्त हो गया है। अच्छा वह रामपाल है, उसके नये वेतन के फिक्शेसन का अन्तर बिल बना तो था। वह पास भी हो गया है पता चला है कि उसकी मृत्यु हो गई है भुगतान का चेक उसी के नाम से बना था, इसलिये उसका भुगतान अन्य किसी को नहीं हो सकता, वैसे अपने वारिस के रूप में किसी का नाम भी दर्ज नही कराया है। मैं तो अभी एक साल से इस सीट पर आया हूँ, मुझे पूरी बात नहीं मालूम है। बगल में पाण्डेय बाबू हैं, वे ही इस केस को देख रहे हैं। उनसे इनको मिला दो, संजय बाबू ने राम प्रकाश को समझा दिया।

राम प्रकाश राधा को लेकर पाण्डेय बाबू के पास चला गया।

बड़े बाबू, संजय बाबू ने इनको आपके पास भेजा है। पाण्डेय बाबू ने ऊपर देखा औरत की तऱफ ऩजर डालते हुए बोल पड़े अच्छा तो यह राधा देवी, राम पाल की घरवाली। राधा देवी से मुखातिब होते हुए पाण्डेय जी ने पूछा क्या हुआ राधा देवी कोर्ट ने कुछ निर्णय दिया? तुम्हारे राम पाल की कब मृत्यु हुई कोई प्रमाण पत्र है? बिल तो बना था भुगतान चेक रामपाल के ही नाम से बना चूँकि उनकी मृत्यु हो गयी है इसलिए उसका भुगतान वैâसे होता, वापस चला गया। उन्होंने कोई वारिस भी नहीं लिखाया जिससे उस वारिस के नाम से भुगतान बनता। तुम्हारा भी कोई आर्डर नहीं आया। कह कर पाण्डेय जी चुप हो गये।

साहब मैं औरत हूँ, औरत का दर्द कोऊ नहीं जानत। हमरे साथ कितना अन्याय हुआ है, एहका भगवान देखियै। रामपाल कितना अन्याय किहें हैं उहका हम जीवन भर नाहीं भूल पाऊब कहकर फफक कर राधा देवी रोने लगी। एक लड़की है जवान होई गई है शादी के लिये पैसे नहीं है औरत जाति हूँ कहाँ जाऊँ रोते-रोते कहती रही पाण्डेय जी उसे निहारते रहे, खामोश उसको देखते रहे उसके साथ आया एक आदमी बड़ी-बड़ी दाढ़ी रखाये, लम्बे-लम्बे बाल किये हुये सजल आँख लेकर पाण्डेय जी की तऱफ देखते हुए कहने लगा बड़े बाबू बहुत बड़ी परेशानी है औरत जाति है कोई रास्ता बतायें जिससे इसका पालन-पोषण हो सके। वह अजनबी व्यक्ति अनुनय विनय के साथ पाण्डेय जी से कह कर चुप हो गया।

आप कौन? पाण्डेय जी ने उस व्यक्ति से पूछा।

मैं साहब वकील कै मुंशी हौंव पता चली तो राधा देवी को लेकर चले आयों, वहीं इनके घर के पास हमरो घर है।

पाण्डेय जी थोड़ा गम्भीर होते हुये  हूँकहकर एक लम्बी साँस ली। कहने लगे तो तुम दिनेश हो राधा देवी के पड़ोसी।

‘‘हाँ साहब’’

देखो दिनेश इस केस को तुम खूब अच्छी तरह से जानते हो कोई बात तुमसे छिपी नहीं है। यह केस बहुत बिगड़ चुका है। राधा देवी रामपाल की पत्नी हैं यह तो सभी जानते हैं परन्तु जब रामपाल रिटायर हुआ उस समय इनका विवाद चल रहा था यह उनसे अलग रहती रहीं। कोर्ट के द्वारा इनको गु़जारा मिलता था लेकिन रामपाल जब अपना रिटायर का का़गजात भराने लगा उस समय उसने इनका नाम वारिस अथवा पत्नी के रूप में नहीं द़र्ज कराया। जिसके कारण इनका कहीं नाम ही नहीं आया। वैसे आप लोगों ने उनका भुगतान रोकवा दिया था। पाँच लाख का चेक बिना कैश हुये वापस चला गया। बहरहाल जो हुआ उसके विषय में क्या कहें। अब भी जो भुगतान बना वह भी रामपाल के ही नाम से बना उसका भी भुगतान नहीं हो पायेगा क्योंकि उनकी मृत्यु हो चुकी है कहकर पाण्डेय जी चुप हो गये।

पाण्डेय जी के चुप होते ही राधा देवी हाथ की उंगलियाँ चटकाते हुए ‘‘उहवैâ नाश होई जाय जौन हमरे साथ ऐसा कर रहा है मै तो अबला हौंवै कौनव तरह भोग लैहों साहब’’ कहकर फिर रोने लगी। उसकी यह एक्टिंग देखकर पाण्डेय जी अतीत के उन दिनों में खो गये। जब रामपाल इसी औरत से जान बचाता भाग रहा था, यही औरत इसी ऑफिस में रामपाल का गिरेवान पकड़ कर सबके सामने जोर-जोर से चिल्ला-चिल्लाकर कहती थी- ‘‘जब गर्मी निकारै का होत है तो मेहरारु चाही, खर्चा देय के जून भाग-भाग फिरत है। तनखाह मिलतै घर पर दै जाये नहीं तो खैर नहीं।’’ इसके साथ दो तीन आदमी रहते रामपाल कुछ न कर पाता, सारा वेतन यही औरत ले लेती गुलछर्रे उड़ाती। रामपाल के आगे पीछे कोई नहीं था, उसकी पहली पत्नी के बच्चे भी उसका साथ छोड़ दिये थे।

रामपाल एक आशि़क मि़जाज का व्यक्ति था। फतेहपुर का रहने वाला था। नौजवानी में सरकारी विभाग में नौकरी मिल गई वह भी स्थायी अर्टीजन की, अच्छी पगार थी। खाता-पीता, हष्ट-पुष्ट शरीर का था। उसकी पहली पत्नी की मृत्यु बहुत जल्द हो गई थी। उससे तीन लड़के थे। लेकिन उसकी आशि़क मि़जाजी के कारण बच्चे लावारिस हो गये। इधर-उधर भटक गये इससे अलग रहने लगे। रामपाल शहर में कमरा लेकर रहता था, उसके साथ रिश्ते में उसका भतीजा अपनी पत्नी के साथ रह रहा था, परन्तु राम पाल आशि़क मि़जाज का नौजवान उस पर डोरे डालने लगा। भतीजे ने समझदारी से काम लिया और वहाँ से पत्नी सहित अलग रहने लगा। उसकी दूर की एक साली लगती थी। यही राधा देवी इसके पति का मर्डर हो चुका था, यह भी अकेली नौजवान थी इसके एक लड़की थी इसको भी सहारे की जरूरत थी, अत: दोनों ने कोर्ट में जाकर मैरिज कर ली। कुछ दिन तो ठीक-ठाक चला परन्तु राधा देवी का चरित्र ठीक नहीं था। रामपाल को जब सब मालूम हुआ तो इस औरत को लेकर का़फी परेशान हुआ जहाँ जाता वही बवाल शुरू होता। अन्त में राम पाल ने शहर से दूर पूरामु़फ्ती गाँव में जमीन लेकर मकान बनवा कर रहने लगा। परन्तु परेशानी ने उसका पीछा नहीं छोड़ा, वहीं पर इस दिनेश का भी मकान था। राधा देवी अच्छे विचारों की नहीं थी, इसका सम्बन्ध दिनेश से बढ़ता गया। सुबह रामपाल ड्यूटी पर चला आता, दिन भर घर पर राधा देवी के सिवा कोई रहता नहीं था। छोटी लड़की थी वह भी स्कूल चली जाती। हर समय दिनेश घर पर बना रहता। धीरे-धीरे दिनेश और राधा का सम्बन्ध परवान चढ़ने लगा। राधा देवी की ऩफरत रामपाल के प्रति बढ़ने लगी। आये दिन बात-बात पर लड़ाई झगड़ा होता रहता। राधा देवी अभी नौजवान थी, उसकी तथा रामपाल की उम्र में २० साल का अन्तर था। नौबत यहाँ तक आ गई कि राधा देवी सोचने लगी- अगर विजय पाल न रहे तो उसे नौकरी मिल जायेगी जीवन मौ़ज मस्ती में कट जायेगा। यह प्लान दिनेश रच रहा था। इसकी भनक रामपाल को लग गई। रामपाल तो था शातिर दिमा़ग का परन्तु अकेला था उसकी उम्र हो चुकी थी। शरीर से भी कम़जोर हो गया था। शराब ज्यादा पीने की वजह से दमा का मरी़ज बन गया था। ऐसी परिस्थिति में विजयपाल पूरामुफ्ती छोड़कर फिर इलाहाबाद में आकर अपने बच्चों के साथ रहने लगा लेकिन यहाँ भी आकर यह औरत बवाल करती, उसका जीना दूभर कर दिया। पहली पत्नी के बच्चे भी दुत्कारते सभी पैसे की चाह रखते। यह दिनेश सरहंग किस्म का था इसके ऊपर क्रिमिनल के कई मु़कदमें चल रहे थे। राधा देवी को इसकी सह मिली थी। जब उसे वेतन मिलता आकर छीन ले जाती कोई कुछ कर नहीं सकता था। यह उसकी वैधानिक पत्नी बनी हुई थी। बाद में रामपाल ने इससे छुटकारा पाने के लिये तला़क का मु़कदमा कर दिया वहाँ भी कोर्ट ने इस औरत के लिए गु़जारा भत्ता बाँध दिया। रामपाल का जीवन नर्क बन गया था। उसी बीच रामपाल की रिटायरमेंट की तिथि आ गई। जब वह अपने सेटेलमेन्ट का का़ग़ज भराने लगा तो उसमें उसने इस औरत का नाम द़र्ज नहीं कराया। ़का़गज चला गया समय से वह रिटायर भी हो गया। परन्तु इस औरत ने उसके सेटेलमेन्ट के भुगतान को रोकवा दिया। बना हुआ पाँच लाख का चेक रुक गया यह बहुत ़खुश हुई थी। दिनेश जश्न मना रहा था। रामपाल एक-एक पैसे के लिए मोहता़ज हो गया। यह औरत मौ़ज से उसके मकान में रह रही थी क्योंकि वह मकान इसी के नाम से था अगर रामपाल उसमें जाता तो जान से जाता यहाँ तक कि सब कुछ होते हुए भी वह दर-दर का भिखारी हो गया।

रामपाल की मौत भी बड़ी दर्दनाक हुई। चूँकि रामपाल के लिये न तो उसका अपना कोई घर था और न ही अपने बच्चों के घर में उसके लिए कोई जगह थी। सो वह गु़जर-बसर के लिये खुल्दाबाद में एक छोटा-सा कमरा किराये पर लेकर रहने लगा। जो पेंशन मिलती उसी से गु़जारा करता। वह दमा का मरी़ज तो था ही एक दिन सर्दी ज्यादा थी दमा ने जोर कर दिया, कोई साथ में था नहीं। अकेले ही दवा के लिये सड़क पर डॉक्टर के यहाँ जा रहा था कि सड़क पार करते समय किसी बाईक से टक्कर लग गई वहीं सड़क पर गिर पड़ा। कम़जोर था, काफी चोट आ गई, लोगों ने किसी तरह उसको मेडिकल अस्पताल तो पहुँचा दिया परन्तु पैसों की कमी के कारण उसका ठीक से इला़ज नहीं हो पाया। पन्द्रह दिन तक सरकारी अस्पताल में रहा वहीं पर उसकी मृत्यु हो गई। उसके लड़कों ने वहीं से ले जाकर उसका दाह-संस्कार कर दिया। इस औरत को पता तक नहीं रहा, आज यहाँ यह नाटक दिखा रही है। अपने अबला होने का रोना रो रही है।

यह नाटक देखकर पाण्डेय जी से रहा नहीं गया उन्होंने कहा ऐसा है राधा देवी जिसने तुम्हारे साथ जो किया वह तो भोग कर चला गया अब तुम अपनी सोचो। वह तो तुम्हे अपनी औरत नहीं माना अपने का़ग़जों में तुम्हारा नाम नहीं लिखाया। यदि कोर्ट ने तुम्हें उसकी औरत मान लिया है तो सारे का़ग़जात कोर्ट का निर्णय तथा आदेश ले आओ विभाग जो कहता है वह हम लोग करेंगे और क्या कर सकते हैं। तुम्हारे इस तरह कोसने से अथवा रोने विलपने से कुछ तो होना नहीं है। रामपाल कब कहाँ मरा शायद तुम्हे पता नहीं है। उसकी मृत्यु का प्रमाण पत्र भी चाहिये, कह कर पाण्डेय जी चुप हो गये।

साहब! ‘‘हम सब लै लेहब, कोर्ट से हमने शादी किया है। हमार अधिकार बनत है।’’ कह कर राधा देवी खड़ी हो गई। का़ग़ज हमरे पक्ष मा है बाबू जी!

अधिकार शब्द तो यह जानती है, अधिकार वैâसे बनता है शायद इसको यह पता होता तो आज यह स्थिति न हुई होती। पाण्डेय जी मूक भाषा में कह कर चुप रहे। अधिकार का वास्ता देकर जाती हुई उस राधा देवी को देर तक निहारते रहे। कार्यालय में कुछ देर के लिये निस्तब्धता छाई रही।

-अजय कुमार पाण्डेय की हिन्दी कहानी कागज की गवाही