प्रेम पुजारी ।। Prem Pujari Kavita by Keshaw Prakash Saxena

"Prem Pujari" Poem written by Keshaw Prakash Saxena Mano Sapana to Sapana Hai Par Sapane mein hi Jeeta hu Tan Chhod Phir kya bachta hai Panchhi ban yau hi Udata hu.

प्रेम पुजारी ।। Prem Pujari Kavita by Keshaw Prakash Saxena
Prem Pujari Kavita by Keshaw Prakash Saxena

प्रेम पुजारी

‘Prem Pujari’ Poem By Keshaw Prakash Saxena
मैं हूँ प्रेम पुजारी केशव
प्रेम सुधा रस का प्यासा हूँ ।
किसी से सत्यप्रेम मधुर बोल
अगर कहीं मैं पा जाता  हूँ 
चुपचाप दिल में छिपा करके
अपने साथ लिये आता हूँ ।
उसके ख्यालो में सोता हूँ
फिर जब मैं स्वप्न देखता हूँ।
तब सुंदर सुंदर धामो में
मैं उसके संग घूमना हूँ ।
सदभावो से निर्मित धरती
स्वर्गधाम को पा जाता हूँ ।
जो न मिलता सुख इस जगत में
वो सपने में पा जाता हूँ 
देवधाम का दर्शन करने
जब मैं कभी कहीं जाता हूँ ।
वहाँ के प्रेम भक्ति भाव को
अपने साथ लिये आता  हूँ ।
उसके ख्यालो में खो करके
सदा वहाँ जाता रहता हूँ ।
प्रेमसुधा रस के ही मद में
प्रकृति नजारो को पाता हूँ ।
रवि की प्रेम स्वर्ण किरणो में
पुष्पो को खिलते पाता  हूँ ।
मेघ प्रेम सुधा वर्षा से
मां को सुसज्जित देखता हूँ।
पेड़ पहाड़ और नदियों को
परहित सेवा में पाता  हूँ
ये ही अन्तरंग भाव लिए
जब मैं दूर दूर उड़ता हूँ ।
प्रकृति नजारो से मिलकर मैं
अलौकिक आनंद पाता हूँ ।
माना सपना तो सपना है
पर सपने में ही जीता हूँ ।
तन छोड़े फिर क्या बचता है
पंछी बन यौ ही उड़ता हूँ ।
                         -केशव प्रकाश सक्सेना
       247/6/1बी ओमगायत्रीनगर
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