मिट्टी की दिवाल- Mitti Ki Diwal Kahani in Hindi

'मिट्टी की दिवाल' अजय कुमार पाण्डेय द्वारा लिखित हिन्दी कहानी है जिसमें एक बचपन के दोस्त की संवेदनाओं को बहुत ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। जब अपना गाँव छुट जाता है तो किस तरह मंजिल पर पहुँच कर उसकी याद आती, एक एक क्षण को बहुत ही सुन्दर ढंग से लेखक ने अपने कहानी के माध्यम से प्रस्तुत किया है।

मिट्टी की दिवाल- Mitti Ki Diwal Kahani in Hindi
Mitti Ki Diwal Hindi kahani by Ajay Kumar Pandey

मिट्टी की दीवाल (Mitti Ki Diwal)

-‘Mitti Ki Diwal’ hindi story by Ajay Kumar Pandey

जिला विकास अधिकारी गौरी शंकर श्रीवास्तव अभी-अभी अपने चैम्बर में आकर बैठे थे, घंटी बजाकर चपरासी को बुलाया और कहा कि देखो कोई मुझसे मिलने आये तो बिना मेरी इ़जा़जत के अन्दर मत आने देना, मुझे जरूरी काम है, जरा शर्मा बाबू से कह दो रामपुर ब्लाक की फाईल लेकर मेरे पास आ जायें।

शर्मा बाबू चैम्बर में फाईल लेकर आ गये, बाहर दरवा़जे पर लालबत्ती जल गई।

चपरासी बाहर लगी बेंच पर बैठ गया, कई लोग आये लालबत्ती देखकर साहब बहुत बिजी हैं क्या? पूछ कर चले गये।

लगभग एक घंटा बीत गया एक लड़का चैम्बर के बाहर खड़ा बड़ा व्यग्र दिख रहा था। उसे देखकर चपरासी ने पूछा क्या बात है का़फी देर से तुम यहाँ खड़े हो। सकपकाते हुये लड़के ने कहासाहब से मिलना है।

साहब अभी बिजी हैं कोई जरूरी काम है?

उसी समय लालबत्ती बुझ गई चैम्बर से शर्मा बाबू फाईल लिये बाहर आ गये चपरासी ने लड़के से कहा क्या काम है, कहाँ से आये हो?

मेरा नाम सतीश है मैं उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ से आया हूँ साहब से मिलना जरूरी है।

अपना पूरा परिचय लिखकर दो साहब यदि कहते हैं तो.....

सतीश ने अपने नाम की पर्ची लिखकर दी

चपरासी ले जाकर गौरी शंकर श्रीवास्तव को दिया तो उन्होंने चपरासी से ही पूछ लिया यह कौन है?

मुझे नहीं मालूम साहब एक लड़का है

अच्छा उसे अन्दर भेजो।

चपरासी बाहर आकर कहने लगा साहब तुम्हें नहीं जानते मैं भी नहीं जानता, साहब मुझ पर बिगड़ भी गये फिर भी जाओ साहब ने अन्दर बुलाया है।

सतीश बिना कुछ कहे जल्द ही चैम्बर के अन्दर हो गया, पहुँचते ही गौरी शंकर श्रीवास्तव के पैर छूकर प्रणाम किया, बगल में खड़ा होकर कहने लगा– ‘‘सर आप मुझे नहीं पहचानेंगे, मैं आपके गाँव रायगढ़ से आया हूँ, आपके बचपन के दोस्त हरीशंकर का लड़का सतीश हूँ। पिता जी तो नहीं रहे परन्तु जब वे बहुत बीमार थे तो आपकी चर्चा किया था और एक पत्र लिखा था। पत्र जेब से निकालकर गौरी शंकर की तरफ बढ़ा दिया। अरे हरीशंकर नहीं रहे दु:खी होते हुये उस पत्र को लेकर ऊपर की लिखावट को देखकर कहने लगे। यह तो हरीशंकर की ही रायटिंग है कह कर पत्र को जेब में रख लिया। सतीश को कुर्सी पर बैठने का संकेत किया। बेटा, हरीशंकर मेरे जिगरी दोस्त थे कहकर गमगीन हो गये जैसे उनकी कोई बहुमूल्य ची़ज खो गयी हो। थोड़ी देर के लिये चैम्बर का माहौल दु:खमय हो गया। श्रीवास्तव जी ने घण्टी बजाई....

चपरासी अन्दर आया

साहब क्या काम है?

ऐसा है रामदेव, सतीश को गाड़ी से बंगले पर भेज दो, ड्राईवर से कहना की मेम साहब से बता देगा कि ये सतीश गाँव से आया है। मैं फोन कर देता हूँ।

सतीश तुम बंगले पर चलो जरूरी काम निपटाकर आता हूँ वहीं पर बात होगी। चपरासी सतीश को लेकर चला गया। गौरीशंकर कार्यालय की फाईल देखने लगे, लेकिन उनका मन बड़ा खिन्न-सा हो गया था। किसी काम में मन नहीं लग रहा था। चपरासी से कहकर एक चाय मंगवाई पीने लगे, उनकी निगाह में बारबार बचपन के दोस्त हरीशंकर का चेहरा नाचने लगा। उनकी व्यग्रता देखकर चपरासी ने पूछ लिया क्या बात है साहब जबसे वह लड़का आया है तब से आप बहुत परेशान दिख रहे हैं।

नहीं कोई बात नहीं है शर्मा जी को बुलाना।

चपरासी चला गया शर्मा जी को बुला लाया

क्या बात है साहब?

शर्मा जी रामपुर ब्लाक के निरीक्षण का काम रोक दो एक जरूरी काम आ गया आज नहीं चलेंगे।

ठीक है साहब शर्मा जी कहकर चले गये।

शाम जल्द ही गौरी शंकर श्रीवास्तव अपने कार्यालय से बंगले पर लौट आये आते ही नौकर से पूछा- एक लड़का आया है उसने खाना खाया कि नहीं? कहाँ पर है उसे अभी चाय पर बुलाना, कहकर श्रीवास्तव जी अपने कमरे की तऱफ चले गये।

ड्राईवर ने गाड़ी गैराज में खड़ी की नौकर ने अटैची ले जाकर साहब के स्टडी रूम में रख दिया और चाय नास्ता तैयार करने चला गया।

चाय की मेज पर सतीश और मेम साहब पहले से ही बैठे बातचीत कर रहे थे। तब तक श्रीवास्तव जी भी कपड़े बदल कर कुर्त्ता, पायजामा और स्लीपर पहनकर गाउन की डोरी बाँधते हुये चाय की मेज पर आ गये। आते ही पूछा सतीश कोई परेशानी तो नहीं हुई।

नहीं सरसतीश ने खड़े होते हुए कहा।

बैठो सतीश, औपचारिकता नहीं यह घर है।

राधेयह सतीश है मेरे गाँव का मेरे बचपन के दोस्त हरीशंकर का लड़का। हमारी-तुम्हारी मैरिज के समय मेरी तरफ से गवाह हँसते हुये श्रीवास्तव ने अपनी पत्नी से मु़खातिब होते हुये कहा।

हाँ, मुझे सब मालूम हो गया है, सतीश से पूरा परिचय भी हो गया है। चाय आपके इंत़जार में ठण्डी हो रही है, राधिका ने कहा।

चाय पीने के बाद राधिका काम से किचेन में चली गई। श्रीवास्तव जी सतीश को लेकर अपने कमरे में चले गये, वह बंगला काफी बड़ा था, उनके कमरे से बाहर का पूरा लान दिखाई देता था, गेट से कौन अन्दर आया, गया सब दिखाई देता था। सतीश को बैठाते हुये श्रीवास्तव ने कहा जबसे तुमसे मिला हूँ न जाने क्यों मुझे मेरा बचपन, बचपन के साथी, अपना गाँव याद आ रहा है। जबकि अब मेरा गाँव से कोई नाता नहीं रह गया, अब तो वहाँ मेरा कोई  है भी नहीं, मेरा एक लड़का है वह भी अमेरिका में शिफ्ट हो गया है, मैं हूँ, पत्नी है। रिटायर होने के बाद मैं यहीं रहूँगा, इसी शहर में। तुम्हारे पिता हरीशंकर बचपन के हम दोनों दोस्त थे। मेरी मां की मृत्यु जब हुयी मैं सात वर्ष का था। मेरे पिता ने दूसरी शादी कर ली थी। मेरी सौतेली मां से बड़ी वेदना मिली। पिता जी दूसरी मां के कहने पर बहुत मारते थे। मैं ज्यादातर तुम्हारे घर पर ही रहता था। हरीशंकर और मैं हम उम्र थे, मेरी उनकी खूब निभती थी। तुम्हारे पिता की बहुत बचपन में शादी हो गई थी, शादी के समय मैं तीन दिन तुम्हारे घर पर ही रह गया। अपने घर गया ही नहीं, इसी बात को लेकर मेरे पिता जी ने मुझे बहुत मारा और घर से निकाल दिया। दो-दिन हरीशंकर अपने कमरे में मुझे छुपाकर रखा। मैं अपने घर नहीं गया। अन्त में घर छोड़कर भाग गया। बड़े दुर्दिन देखने पड़े। कुछ दिन भटकता रहा इसी शहर के गुप्ता परिवार ने मुझे सहारा दिया। पढ़ाया-लिखाया, उन्हीं के सहयोग से मैं इस मु़काम तक पहुँचा हूँ। अब वे भी नहीं रहे... कहते-कहते... श्रीवास्तव जी कुछ गमगीन हो गये। मुझे मेरा गाँव बहुत याद आता था। बाद में पता चला कि मेरे माता-पिता नहीं रहे, उन लोगों ने मेरी कोई खबर नहीं ली, जब मुझे मालूम हुआ तो मैं गाँव गया था परन्तु वहाँ मेरा कुछ था ही नहीं, तुम्हारे पिता हरीशंकर से मुला़कात हुई, उन्ही के घर पर रहा। मैं उनको अपना पता देकर चला आया, तब से गाँव नहीं गया। हरीशंकर कई बार आये, मेरी शादी पर मेरी तऱफ से वे ही गवाह थे। कुछ ऐसी स्थिति आई कार्य की व्यस्तता हुई कि तुम्हारे पिता जी का भी आना-जाना कम हो गया। धीरे-धीरे स्मृतियाँ ही शेष रह गयीं। परन्तु आज तुम्हे देखकर और हरीशंकर के हाथ की पाती पाकर मैं आज से ४५ साल पीछे चला गया। हरीशंकर की मृत्यु ने मुझे बहुत दु:खी कर दिया। लेकिन मृत्यु ही तो जीवन का कटु सत्य है, गाँव के सारे पुराने लोग तो नहीं होंगे किसके विषय में पूँछू कोई हमें भी नहीं जानता होगा कहकर श्रीवास्तव जी चुप हो गये। कमरे में खामोशी छा गई।

कुछ देर तक कोई नहीं बोला...। थोड़ी देर बाद सतीश चुप्पी तोड़ते हुये कहने लगा ऐसी बात नहीं है अंकल आप गाँव के लोगों को भले न जानते हो लेकिन वहाँ आप की चर्चा होती है। जब कभी पढ़े लिखे बच्चों में उन्नति, विकास, पढ़ाई की बात चलती है तो लोग आपका ही नाम लेते हैं। गर्व करते हैं तथा बच्चों को आप जैसा बनने की सलाह देते हैं। आपके संघर्ष की परेशानियों की बात बताते हैं कि किस तरह संघर्ष करके आपने इस शिखर को छुआ है।

सतीश की बात सुनकर श्रीवास्तव जी बड़े ही उत्सुकता से सतीश की तरफ देखने लगे। लगा जैसे कोई प्रश्न पूछ रहे हों।

सतीश ने कहा अंकल यह सत्य है।

मैं गाँव के विषय में जानना चाहता हूँ अब वहाँ क्या शेष रह गया है? जब मैं गाँव से भाग कर आया था, तब तुम्हारा जन्म भी नहीं हुआ था उस समय वह बड़ा सुन्दर गाँव था। गाँव के सभी लोग एक परिवार की तरह रहते थे। सभी एक दूसरे के सुख-दु:ख में शामिल होते थे। हर एक बुजुर्ग सभी के बच्चों को अपने बच्चों की तरह मानते थे। एक बार हरीशंकर और मैं गेंद तड़ी खेल रहे थे। उधर से शिवपाल बाबा जा रहे थे, हम लोगों को खेलते देखकर डण्डा लेकर दौड़ा लिया था। पढ़ना-लिखना नहीं जब देखो खेल, क्या करोगे बड़े होकर यह खेल काम नहीं देगा। हम लोग भागकर छुप गये थे। लेकिन अब ऐसा नहीं होता होगा बड़ा परिवर्तन आ गया होगा। उस समय गाँव में पाँच लोगों का एक गुट था जिसे पाँच पाण्डव के नाम से जानते थे, वे लोग बड़े ही न्याय प्रिय थे। न्याय के लिए जमींदार से भी लड़ जाते थे।  गाँव के गरीब लोगों की भलाई के लिये हर समय तैयार रहते थे। जल्दी से गाँव का कोई मामला पुलिस में नहीं जाता था। उस गाँव में मेरी सुध में कभी चोरी नहीं हुई। गाँव में बड़ा सुन्दर भाई-चारा था।

अंकल अब गाँव बहुत बदल गया है। सतीश कहने लगा।

आपके समय के वे पाँच पाण्डव नहीं रहे। दीनानाथ की मृत्यु हो गई उनके तीन लड़के हैं, एक इलाहाबाद में रहता है दो गाँव में ही रहते हैं। उनमें एक गाँव का प्रधान है। उनके बगल में श्याम दुबे के लड़के बाहर कमाई करके उन्नति कर रहे हैं। राधे मिसिर की औरत अपने मैके चली गई है। राधे खेतीबारी बेचकर गाँव से नाता तोड़ लिया है। दूधनाथ, बच्चा गुरौली के कोई नहीं है रामकुमार तिवारी के परिवार में दो लड़के हैं। श्यामधर वैद्य का परिवार उनकी मृत्यु के बाद तितर-बितर हो गया है, श्याम बिहारी शुक्ल के बच्चों में भी एकता नहीं रह गई। दुबाईन की मृत्यु के बाद श्याम सुन्दर आ गये हैं। शिवलाल पाण्डे के भांजा गद्दी पर आ गये हैं। राम जानकी मन्दिर की सारी जमीन का प्रयोग कर रहे हैं वे सब आपस में लड़ते रहते हैं। देवी प्रसाद के भी कोई नहीं था। उनके दूर के रिश्तेदार गद्दी पर आ गये हैं। वे सब भी अच्छे नहीं हैं, गाँव में राजनीति ही करते रहते हैं। बेनी माधव का परिवार पढ़ा लिखा था बड़ी एकता थी परन्तु वह अब दुश्मनी में बदल गई है। मुखिया के पूरे परिवार का आपस में मेल जोल नहीं है। मुराई टोला में भी कोई बुजुर्ग नहीं रह गया है देवतादीन मुराई एक सौ पाँच वर्ष के होकर मर गये उनकी पत्नी अभी जिन्दा है, ज्यादातर पंजाब में बस गये अब वह टोला वीरान लगता है जहाँ कभी हर द्वार पर जाड़े के दिनों में अलाव जलती थी, चौपाल लगती थी अब वहाँ सियार भी नहीं बोलते। चमरौटी, पसियाना का भी वही हाल हो गया है। गजाधर नहीं रहे उनका परिवार बड़ा हो गया है। सब छोटी-छोटी कोठरी बनाकर उसी में रह रहे हैं। बड़ा किचिर-पिचिर हो गया है। दुजई, झुरई के परिवार का हाल न पूछिये। चमरौटी में मातादीन चौकीदार का एक लड़का गूँगा है मतऊ करिंगा की मृत्यु हो गई। छग्गू को गठिया की बीमारी पकड़ ली है। कोहरौटी में मगरु की मृत्यु हो गई है उसकी जमीन भांजे ने धोखे से लिखा लिया है रामलाल के परिवार से मु़कदमा चल रहा है। धोबियाना में लल्लू का परिवार रह गया वे भी किसी तरह परिवार चला रहे हैं। पाण्डव के मुख्य पात्र श्याम कृष्ण लाला भी नहीं रहे। उनके लड़के भी जीवन से संघर्ष कर रहे हैं। पूरे गाँव के लोग अपनी अपनी समस्या में उलझे हुये हैं, अब किसी को किसी के पास बैठने की फुर्सत ही नहीं सुख-दु:ख की बात करने का समय ही नहीं, छोटी-छोटी-सी बात के लिये लोग पुलिस अदालत तक पहुँच जाते हैं। अब तो कार-परोजन पर भी कोई किसी के दरवा़जे पर नहीं दिखता। किसी के यहाँ पूजा आदि होने पर प्रसाद के लिये भी लोग बहुत कम जाते हैं। कच्चे मकान गिरते जा रहे हैं। लोग एक-एक कमरा पक्का बनवा कर उसी में फूले नहीं समाते। गाँव में बड़ा परिवर्तन हो गया है। अब बरसात में पयगिया में बाढ़ नहीं आती। पण्डित की तलरी अब नहीं उफनाती सारे तालाबों से नाला निकल गया है, थोड़ी सी बरसात हुई सारा पानी बकुलाही में चला जाता है। गलियों में कीचड़ नही होता, गाँव के बीचाे-बीच वाला गलिहारा अब डामल का हो गया है शिवपुर की बा़जार में का़फी बाहरी आदमी आकर दुकान खोल लिये है गांव की हर गली पर खंडजा बिछ गया है नाली पक्की बन गयी। बिजली के खम्भे गड़ गये है तार भी खिच गया है। गाहे बगाहे बिजली भी आ जाती है। गाँव अम्बेडकर गाँव हो गया है। गाँव के वुँâओं का अब कोई उपयोग नही रह गया कुएँ बेकार हो गये है। पाण्डे के घर के पास वाली कुईया को बजरंगी के लड़को ने भांठ लिया है। रामपत मौर्या के पास का वुंँâआ सूखकर कीचड़ हो गया है रघुनन्दन के दुआरे वाला वुँâआ बहुत गन्दा हो गया, उनके शिवालय में लोना लग गया है। रामजग के कुँआ में पीपल, बरगद जम गया है। हर दूसरे दरवाजे पर हैण्डपम्प लग गया है। ज्यादातर लोग अपनी-अपनी चक में बोरिंग करवा लिये है। कहने को सब सुविधा है परन्तु सुकून नहीं है। अब उस गाँव में लोग ईंख नहीं बोते आपके समय पूस, माघ के महीने में जो गुड़ के बनने की सोधी महक आती थी उसका दूर तक कोई नामो निशान नहीं रह गया। बस गाँव के लोग धान गेंहू की ही फसल लेते हैं न तो चना होता है न ही अरहर लोग शकरकन्द भी लगाना बन्द कर दिये हैं। गाँव के पश्चिम में जमींदार की आम की बाग कट गई। पाण्डे बाबा के चौरा के पास की सरकारी बगिया के सारे पेड़ गिर गये। इमली का पेड़ नहीं रहा महुआरी कट गई। वहाँ पर ईंट का भट्ठा लग गया। वैद्य जी का जंगल खत्म हो गया, जामुन का वह मोटा पेड़ आँधी में गिर कर नष्ट हो गया वहाँ का बैरहना बिना बेर के पेड़ का हो गया, उनकी तलरी का कमल नष्ट हो गया। लाला का वैâथा का पेड़ सूख गया। उस गाँव में सब कुछ बदल गया है अब रह गया है तो आपस की रार लोगों में एक दूसरे के प्रति राग-द्वेष कोई किसी को उन्नति करते हुये नहीं देखना चाहता सब एक दूसरे का हड़पना ही चाहते है न जाने लोग क्या साथ ले जायेंगे लोग लोभ-लालच में प्रेम, प्यार, भाईचारा, मानवता सब भूल गये हैं। कहते-कहते सतीश दु:खी हो गया।

सतीश को दु:खी देखकर श्रीवास्तव जी कहने लगे यही तो कलयुग है यह संसार है सि़र्फ अपने मतलब का फिर भी क्या किया जा सकता है। इसी में जीना होगा। क्या बात है सतीश तुम बताते-बताते इतना दु:खी क्यों हो गये? कोई बात नहीं अंकल, पापा की बीमारी, फिर उनकी मौत ने हमारे परिवार को भुखमरी के कगार पर ला दिया। मेरी पढ़ाई चौपट हो गई कोई साथ देने वाला नहीं रहा। खेत बिक गया खाने कमाने का कोई सहारा नहीं रह गया। बड़ी गिरानी आ गई जो अपने थे वे भी मुँह मोड़ लिये कहते-कहते सतीश रो पड़ा।

सतीश आँसू पोछ लो रोओ नहीं आँसू आदमी को कम़जोर बना देते हैं। हौसला रखो सब ठीक हो जायेगा, सबका भगवान होता है, श्रीवास्तव जी ने उसे ढाढस बंधाते हुये कहा।

आँसू पोछते हुये सतीश ने कहा अंकल, पापा जब बहुत बीमार थे उन्हें भी इस बात का ज्ञान हो गया था कि वे अब बचेंगे नहीं तब उन्होंने दु:खी मन से आपके लिये पत्र लिखा था कहा था कि जब कोई सहारा न रहे तो इस पते पर जाना शायद वहाँ तुम्हारा कुछ भला हो सके। कह कर सतीश चुप हो गया।

कमरे में कुछ देर के लिये निस्तब्धता छा गई।

बाहर अँधेरा बढ़ चला था जैसे प्रकृति सोने लगी हो। दूर सड़क पर भारी वाहनों के चलने की और हार्नों की आवाज आ जाती थी। श्रीवास्तव जी ने  घड़ी पर ऩजर डाली रात के नौ बज रहे थे। किचन से राधिका ने नौकर को आवा़ज दी रामू! साहब को कह दो भोजन तैयार है, सतीश को भी बुला लो।

आवा़ज सुनकर श्रीवास्तव ने खामोशी तोड़ते हुये कहा चलो सतीश भोजन किया जाय फिर आराम किया जाय, चिन्ता मत करो भगवान जो करेगा अच्छा ही होगा। जिसने पैदा किया है उसे भी चिन्ता है।

भोजन करने के बाद सतीश का बिस्तर गेस्ट रूम में लगा था वह वहाँ सोने चला गया। श्रीवास्तव अपने स्टडी रूम में चले गये। परन्तु आज उनका मन फाईलों में नहीं लग रहा था। वे मन बदलने के लिए गीता की टीका पढ़ने लगे। कुछ देर के बाद उन्होंने उसे भी बन्द करके रख दिया। बार-बार उन्हें अतीत के पल परेशान करने लगे, उनकी निगाह के सामने वही बचपन, गाँव, वहाँ की मस्ती अल्हड़पन, खेतों के मेड़ों पर गिरते-पड़ते घूमना, जानवर चराना, पाड़े की बगिया में चील्हों का खेल, पाड़ेबाबा के चौरा में बेल-वेर का तोड़ना जैसे सब सजीव-सा हो गया हो वे मन को पुरानी यादों से हटाने के लिये हरीशंकर का पत्र पढ़ने लगे

‘‘प्रिय मित्र! इस समय मैं जीवन के अन्तिम दौर से गु़जर रहा हूँ, किस पल जीवन की शाम ढल जाय मुझे नहीं पता। मेरे पास तुम्हें देने को कुछ नहीं है न तो प्यार न ही सहानुभूति, केवल तुम्हारे मंगल की कामना ही कर सकता हूँ। जीवन के लिये मैंने संघर्ष किया परन्तु हार गया। बीमारी ने मेरी कमाई का सारा फल छीन लिया। बच्चों को भी देने के लिये कुछ शेष नहीं रह गया है। मेरी मृत्यु के बाद मेरा एकलौता लड़का सतीश जिसकी चिन्ता मुझे सताये जा रही है, उसको किसी का सहारा नहीं मिलेगा। कहने को बहुत रिश्तेदार-नातेदार सगे भी हैं पर कोई अपना नहीं लगता, किसी पर विश्वास भी नहीं, एक तुम्ही हो गौरीशंकर जिस पर मैं विश्वास और अधिकार भी जता सकता हूँ मित्र होने के नाते इसी आस्था व्ाâे साथ मैंने सतीश को तुम्हारी बाँह पकड़ने को कहा है। शायद यही प्रभू की इच्छा हो।’’ ‘‘हरी...’’

पत्र पढ़ते-पढ़ते गौरीशंकर की पलकें भीग गई, वह चुपचाप पत्र को सिरहाने रखकर रातभर करवटें बदलते रहे। हरीशंकर की आस्था सतीश के भविष्य को लेकर सोचते रहे। नींद कोसो दूर थी। बार-बार हरीशंकर का चेहरा वही बचपन के दिन भविष्य की भूमिका घूम-घूम कर आ रहे थे। हरीशंकर बड़ा स्वाभिमानी था यह पत्र उसने बड़ी म़जबूरी में लिखा होगा। फिर भी मेरे बेटे और सतीश में क्या अन्तर है यह तो मेरे अन्तरंग दोस्त का लड़का ही तो है, सोचते-सोचते न जाने कब उन्हें नींद आ गई, पता ही न चला।

रात बीत गई भोर का आगमन था श्रीवास्तव के लान में सुनहरी धूप बिखर रही थी। सतीश उन्हीं के पास रहकर पढ़ाई करने लगा था वह बड़ी कुशाग्र बुद्धि का था। हाईस्कूल, इण्टर, बी.ए. प्रथम श्रेणी में पास था यहाँ पर आकर सिविल की तैयारी करने लगा। यहाँ आये हुये दो वर्ष हो गये, इस बीच उसने कई जगह नौकरी हेतु आवेदन किया तैयारी भी करता रहा। इस बार उसकी अच्छी तैयारी थी सिविल का पेपर भी अच्छा हुआ था, उम्मीद थी। छ: माह बाद रेजल्ट आया सतीश को सफलता मिल गई थी।

आज बसन्त पंचमी का दिन था आमों में बौर का अंकुरण हो गया, डालों पर कोयल कुहकने लगीं, फुलवारी की कलियाँ खिलने लगीं, सुगन्धित हवायें ढुरकने लगी, होली के अलाव के लिये लकड़ियों का प्रबन्ध होने लगा। प्रकृति नया कलेवर पहनने लगी। एक नये परिवर्तन की पृष्ठिभूमि का शुभारम्भ हो गया। कितनी ठिठुरन और वेदना के बाद बसन्त का आगमन हो रहा था। मैं खड़ा देखता रहा। अब सतीश गाँव से माँ को लाकर अपने पास रखेगा। दूर गाँव का वह खाली ताला लगा घर इनके अनिश्च्ति आगमन की आश लिये टुकुर-टुकुर लखता रहेगा। बरसात आयेगी कच्ची मिट्टी की दीवाल में दरार बढ़ती रहेगी, बरसात की सीलन झेलती रहेगी। धीरे-धीरे एक दिन वह घर खण्डहर फिर डीह हो जायेगा। शायद फिर कभी बसन्त आये, लेकिन तब तक मिट्टी की दीवाल तो नहीं, केवल ताला लगा दरवा़जा जरूर इन्त़जार करता रहेगा।

-अजय कुमार पाण्डेय की हिन्दी कहानी – मिट्टी की दिवाल