Pitru Paksha: श्राद्ध के लिए पिंडदान और तर्पण कैसे करें, सामग्री, विधि, महत्व, कथा, सावधानियाँ, लाभ

पितृ पक्ष आपके लिए किस तरह वरदान बन सकता है, पितरों के श्राद्ध के लिए पिंडदान औऱ तर्पण की पूर्ण विधि

Pitru Paksha: श्राद्ध के लिए पिंडदान और तर्पण कैसे करें, सामग्री, विधि, महत्व, कथा, सावधानियाँ, लाभ
Pitru Paksha, Pitar Pakha

Pitru Paksha : पितृपक्ष का महत्व, तिथि, कब से कब तक, श्राद्ध की तिथियाँ, श्राद्ध पूजन सामग्री, श्राद्ध के नियम, पितृपक्ष की कथा- Written by Nand Lal Singh

यदि आप पितृ पक्ष के बारे में कुछ नहीं जानते हैं, तो चलिए मैं आपको अपने इस लेख में विस्तार से बताता हूँ की पितृ पक्ष कब से कब तक रहता है, इसकी तिथियों के बारे में, किस तिथि को आपको अपने पितरों का श्राद्ध (Pitru Shraddha) करना चाहिए, श्राद्ध कैसे किया जाता है, इसके पूजन सामग्री (Puja Samagri) , विधि (Shraddha Vidhi), और कथा (Katha) के बारे में जानकारी देता हूँ-

पितृपक्ष का महत्व (Pitru Paksha ka Mahatva): धार्मिक मान्यता के अनुसार पितृपक्ष में यदि पितरों का श्राद्ध न किया जाये तो उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल पाती है और वे भटकते रहते हैं। इसलिए पितरों की आत्मा की शान्ति और उनकी तृप्ति के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध किया जाता है। अपने पितरों का श्राद्ध करने से सबसे बा लाभ यह मिलता है कि आपको अपने पितरों का आशिर्वाद हमेशा मिलता रहता है, जिससे कि घर में शांति बनी रहती है। कहा जाता है कि यदि पितर अपने परिवार से नाराज हो जाते हैं तो उस घर में खुशहाली नहीं रहती और तमाम तरह की समस्यायें उस घर में आने लगती हैं। व्यापार नौकरी, गृहस्थी इत्यादि में भी हानि होती है, इसलिए पित पक्ष में श्राद्ध (Pitru Paksha Shradda) करना आवश्यक बताया गया है। श्राद्ध के द्वारा आप अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं। पिंडदान (Pind Daan) और तर्पण (Tarpan) के द्वारा श्राद्ध करके आप उनकी आत्मा की शांति के लिए कामना करते हैं। पिंडदान और तर्पण के माध्यम से पितृ पक्ष में आप अपने पितरों को भोजन पहुँचाते हैं, जिसे ग्रहण करके आपके पितर खुश हो जाते हैं। अब आइये आपको श्राद्ध के नियम, सामग्री, तिथियाँ और कथा के बारे में बताऊँगा जिसे पढ करके आप आसानी से अपने पितरों की विधि पूर्वक सेवा कर सकते हैं।  

मान्यता है कि पितृ पक्ष में यमराज पितरों को अपने परिजनों से मिलने के लिए उनको मुक्त कर देते हैं, जिसके दौरान पितर अपने परिवार में जाकर श्राद्ध को स्वीकार करते हैं, इसलिए यदि पितृ पक्ष में यदि पितरों का श्राद्ध न किया जाए तो उनकी आत्मा दु:खी और अशांत हो जाती है।

पितृपक्ष की तिथि (Pitru Paksha Ki Tithi) : हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में और अंग्रेजी महीने के सितम्बर माह में पितृ पक्ष होता है । पितृपक्ष पूर्णिमा से प्रारम्भ होता है और 16 दिनों के बाद अमावस्या के दिन समाप्त होता है, इस तरह से पितृ पक्ष कुल सोलह दिनों का होता है। इन सोलह दिनों को धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अलग-अलग तिथियों के रूप में मनाया जाता है, जो इस प्रकार है- 1. पूर्णिमा श्राद्ध 2. प्रतिपदा 3. द्वितीया 4. तृतीया 5. चतुर्थी 6. पंचमी 7. षष्ठी 8. सप्तमी 9. अष्टमी 10. नवमी 11. दशमी 12. एकादशी 13. द्वादशी 14. त्रयोदशी 15. चतुर्दशी 16. सर्वपित्र अमावस्या ।

श्राद्ध किस तिथि को करना चाहिए ? (Shraddha Ki Tithi) : वैसे तो पितृ पक्ष में आप अपने पितरों को प्रत्येक दिन श्राद्ध कर सकते हैं और उन्हें भोजन खिला सकते हैं लेकिन यदि आप किसी एक दिन ही श्राद्ध और पूजन करना चाहते हैं तो चलिए मैं बता देता हूँ कि किस दिन श्राद्ध करना आपके पितरों के लिए ज्यादा लाभप्रद होगा। मैं इन्हें छ: भागों में विभाजित करके आपके समक्ष विवरण रख रहा हूँ ताकि आपको आसानी से समझ में आ जाये-

  1. आमतौर पर जिस दिन (तिथि) दिवंगत परिजन की मृत्यु हुई हो उसी तिथि को अपने परिजन का श्राद्ध करना चाहिए। लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में उस दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए विशेष तिथि को श्राद्ध करना ज्यादा श्रेष्ठकर माना गया है।
  2. यदि दिवंगत परिजन की मृत्यु किसी दुर्घटना, अकाल मृत्यु या आत्महत्या के कारण हुई हो तो ऐसे दिवंगत परिजन के लिए चतुर्दशी के तिथि में श्राद्ध करना चाहिए।
  3. यदि किसी सुहागिन महिला की मृत्यु हुई है, और उसके लिए श्राद्ध कर रहे हैं तो ऐसे दिवंगत आत्मा के लिए नवमी की तिथि को श्राद्ध करना चाहिए।
  4. यदि दिवंगत आत्मा आपके पिता या माता हैं तो पिता का श्राद्ध (Pita Ka Shraddha) अष्टमी के तिथि को और माता का श्राद्ध (Mata Ka Shradha) नवमी की तिथि को करना चाहिए।
  5. यदि आप जिसका श्राद्ध करना चाहते हैं उसके मृत्यु की तिथि नहीं मालूम हो तो ऐसे दिवंगत आत्मा के लिए अमावस्या के दिन श्राद्ध करना चाहिए।
  6. यदि आप किसी साधु-संयासी (Sadhu Sanyasi Ka Shraddha) का श्राद्ध करना चाहते हैं तो ऐसे दिवंगत पवित्र आत्मा के लिए द्वादशी के दिन श्राद्ध करना चाहिए।

श्राद्ध के लिए सामग्री (Shraddha Samagri) : दिवंगत परिजनों के श्राद्ध के लिए पिंडदान (Pind Daan) और तर्पण (Tarpan) किया जाता है, जिसके लिए पानी, दूध, जौ, चावल, गंगाजल, पका हुआ चावल और तिल की आवश्यकता होती है। श्राद्ध के लिए उपयोग किया जाने वाला पिंडदान पके हुए चावल, दूध और तिल का बनता है। जबकि तर्पण को तैयार करने के लिए पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालना होता है। इसके अतिरिक्त पूजन के लिए सादे फूलों का इस्तेमाल आप कर सकते हैं, रंगीन फूलों का इस्तेमाल वर्जित किया गया है।

श्राद्ध की विधि (Shraddha Ki Vidhi) :

  1. सबसे पहले आपको अपने दिवंगत परिजन के श्राद्ध के लिए उपर्युक्त विवरण के अनुसार एक निश्चित तिथि का चुनाव करना चाहिए।
  2. परम्परागत धार्मिक मान्यता के अनुसार विधि पूर्वक श्राद्ध करने के लिए किसी जानकार पुरोहित को बुलाना चाहिए।
  3. श्राद्ध के तिथि को अपने दिवंगत परिजन के पनपसंद का भोजन-पकवान बनाना चाहिए।
  4. इस बात का ध्यान रहे कि श्राद्ध के दिन बनाये जाने वाले पकवान में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल न करें, भले ही आपके परिजन को लहसुन-प्याज खाना पसंद हो। इसके पीछे धार्मिक कारण यह माना जाता है कि मृत्यु के बाद किसी भी आत्मा को तामसी भोजन पसंद नहीं होता है। और ऐसा भोजन धर्म-विधि मान्य नहीं है।
  5. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उस तिथि को बने हुए भोजन को किसी पत्ते पर साफ करके निकालना चाहिए।
  6. पितरों तक भोजन पहुँचाने के लिए पंचबलि ( Shraddha Panchabali) का प्रावधान किया गया है। जिसमें गौ (गाय) बलि, श्वान (कुत्ता) बलि, काक (कौवा) बलि, पिपीलिका (चींटी) बलि और देवादि बलि का विशेष महत्व है। इस प्रकार के बलि का तात्पर्य की जीव की हत्या से बिल्कुल नहीं है। बल्कि इस बलि का मतलब है कि इन जीवों को उस तिथि को बना हुआ पकवान को देना मान जाता है। जब आप उस दिन के बने पकवान को इन जीवों को खिलाते हैं तो वह सीधे आपके पितरों को पहुँचता है।
  7. पिंडदान और तर्पण करने के बाद ब्राह्मणों और पुरोहितों को भोजन करना चाहिए और उसके बाद उन्हें दक्षिणा देना चाहिए।
  8. ब्राह्मणों को इस तिथि को सीधा अर्थात चावल, दाल चीनी, मसाले, नमक, कच्ची सब्जियाँ, मौसमी फल और तेल देना चाहिए।
  9. विधि पूर्वक श्राद्ध के बाद अपने पितरों से जाने-अनजाने में उनके साथ हुई भूल के लिए क्षमा भी माँगनी चाहिए और उन्हें अपने घर आने के लिए धन्यवाद देना चाहिए।
  10. पूर्णत: श्राद्ध ब्राह्मणों के भोजन और दान-दक्षिणा के बाद पूरे परिवार के साथ भोजन करना चाहिए।

सावधानियाँ (Pitru Paksha Aur Savdhaniya) :

  1. पितृ पक्ष में पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर प्रत्येक दिन तर्पण करना चाहिए।
  2. पिंड को शरीर का प्रतीक माना गया है। इसको बनाने के लिए पके हुए चावल, दूध और तिल का उपयोग करना चाहिए।
  3. पितृ पक्ष के दौरान देवताओं के पूजन को बंद नहीं करना चाहिए, लेकिन किसी शुभ कार्य, पूजा-पाठ और अनुष्ठान से बचना चाहिए। यदि शुभ कार्य आवश्यक हो तो उसमें सादे फूलों का इस्तेमाल ही करना चाहिए।
  4. श्राद्ध तिथि को सुगंधित पदार्थ का सेवन, पान, तेल और संभोग को वर्जित किया गया है।
  5. पितृ पक्ष में मांस, लहसुन, प्याज, चना, हींग, बैंगन, शलजम, काला नमक और अन्य तामसी भोजन को वर्जित माना गया है, अत: इन चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  6. दिवंगत परिजन के मनपसंद का भोजन बनाना चाहिए।

अपवाद :  पितृ पक्ष में धार्मिक परम्पराओं के अनुसार किसी भी शुभ कार्य के वर्जित किया गया है। लेकिन वर्तमान बहुत धार्मगुरुओं के माना है कि पितृ पक्ष में कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। बल्कि पितृ पक्ष कोई शुभ कार्य की शुरुआत करना अच्छा मानते हैं, इसके पीछे कारण यह बताया गया है कि यदि पितृ पक्ष में आप कोई भी शुभ कार्य को करते हैं तो उस शुभ कार्य में आपके दिवंगत परिजनों का आशीर्वाद होता है और वह कार्य सफल होता है।

पितृ पक्ष की कथा : पितृ पक्ष की अनेक पौराणिक कथाएँ समाज में प्रचलित हैं, जिनमें से मैं यहाँ एक कथा का वर्णन करने जा रहा हूँ, जिसका तात्पर्य बस पितृ पक्ष की महत्ता को बतलाना है कि पितृ पक्ष में पितरों और आपके के लिए कितना महत्वपूर्ण है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार एक गाँव में जोगे और भोगे नाम के दो सगे भाई रहते थे। जोगे बहुत अमीर था जबकि भोगे बहुत ही गरीब था, जिसके पास खाने के लिए भी ठीक से कुछ नहीं था। पितृ पक्ष का जब महीना आया तो जोगे की पत्नी ने जोगे से पितरों के लिए श्राद्ध करने के लिए कहा, लेकिन जोगे इन सब बातों को नहीं मानता था और वह अपने अमीर पर घमण्ड करता था। जोगे की पत्नी ने समाज के डर से कि लोग क्या कहेगें। फिर जोगे की पत्नी ने इसी बहाने अपनी अमीरी का रोब जमाने के लिए माइके और गाँव वालों को निमंत्रण दिया। अपनी देवरान और देवर भोगे को भी आमंत्रित किया, जिससे कि वे उनका खाना बनाने में उनकी मदद कर सकें और उनके अमीरी को देख सकें। श्राद्ध तिथि को जोगे ने सबको अच्छा-अच्छा खाना खिलाकर अपना रुतबा जाहिर किया।

जब दोपहर हुआ उनके पितरों का आगमन हुआ। सबसे पहले पितर जोगे के घर गये तो वहाँ देखा कि सभी लोग खाना खा लिये हैं और उनको कुछ नहीं निकाला गया है। और वे लोग आपस में मस्ती कर रहे थे और अपने ही मान बाई कर रहे थे। वहाँ सब देखकर पितर बहुत दु:खी हुए। उसके बाद पितर भोगे के घर गए तो वहाँ देखा कि पितरों के नाम पर अगिआरीदे दी गई थी। पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही नदी की ओर चल दिये और नदी के तट पर दु:खी मन से बैठ गए। थोे ही देर बाद सारे पितर नदी के तट पर इकट्टा हुए। सभी लोग अपनी-अपनी कथा सुनाकर अपने परिजनों की बाई करने लगे। जोगे-भोगे के परिजन को दु:खी और उदास देखकर दूसरे पितर जब उनसे उनकी कथा सुनी तो सारे पितर बहुत दु:खी हुए। पितरों ने कहा कि यदि भोगे सामर्थ्यवान होता तो उन्हें भूखा नहीं रहना पता। भोगे के घर खाने के लिए उसके पास दो जून की रोटी तक न थी। सारे पितरों को भोगे के गरीबी पर दया आई और सभी पितरों ने प्रार्थना किया कि भोगे के घर धन हो जाए, भोगे के घर धन हो जाए।

शाम हो गई थी, बच्चे भूख से तप रहे थे, घर में कुछ नहीं था। बच्चों ने माँ से कहाँ माँ भूख लगी है। माँ ने बच्चों की बात को टालने के लिए ऐसे ही कह दिया कि जाओ आँगन में आँच पर खाने का बर्तन रखा है, खा लो। भोगे के बच्चे जब आँगन में जाकर बटुए को खोला तो देखा कि बटुआ मोहरों से भरा हुआ था। बच्चों ने माँ से जाकर सारी बात बताई, भोगे और भोगे की पत्नी ने जब आँगन में जाकर देखा तो वे आश्चर्यचकित रह गये, इस तरह भोगे जोगे से भी ज्यादा अमीर हो गया। अगले साल जब पितृ पक्ष में पितर आये तो भोगे ने छप्पन भोग तैयार करवाया और ब्रह्मणों को बुलाकर श्राद्ध किया, भोजन कराया और दक्षिणा दी, जेठ-जेठानी को सोने के बर्तन में भोजन कराया। पितरों के लिए छप्पन भोग का पकवान निकला हुआ था, यह सब देखकर पितर बे प्रसन्न और तृप्त हुए और भोगे को हमेशा शांत और प्रसन्न रहने का आशीर्वाद तिया। पितरों के आत्मा को भी बहुत शांति मिली। इसलिए पितृ पक्ष का बहुत महत्व है।    -Written by Nand Lal Singh