विदुर नीति : पाप और पुण्य का फल कैसा होता है? Vidur Neeti : Pap aur Punya kya hota hai

Pap aur Punya ka fal kaisa hota hai, mahatma vidur ji ne apne vidur niti me bataya hai ki iska parinam kya hota hai aur iska fal kya hota hai.

विदुर नीति : पाप और पुण्य का फल कैसा होता है? Vidur Neeti : Pap aur Punya kya hota hai

नष्टप्रज्ञ: पापमेव नित्यमारभते  नर: ।

पुण्यं प्रज्ञां वर्धयति क्रियमाणं पुन: ।।

महात्मा विदुर जी ने महाराज धृतराष्ट्र से युधिष्ठर के वनगमन के पश्चात् समझाते हुए कहते हैं कि महाराज जिसकी बुद्धि भ्रष्ट अथवा नष्ट हो जाती है, वह व्यक्ति जीवन भर सदा पाप ही करता रहता है और इसी बारे में विचार करता रहता है। क्योंकि गलत कार्य करने से उसकी बुद्धि-विवेक नष्ट हो जाता है, फिर उसके मन में अच्छे विचारों का आवागमन बन्द हो जाता है। इसलिए महाराज व्यक्ति को पाप कर्म करने की आदत से सदा बचना चाहिए।

इसके विपरीत जब कोई मनुष्य लगातार पुण्य कर्म करने की आदत जीवन में अपनाता है तो उसकी बुद्धि सदा प्रबल और श्रेष्ठ रहती है, ऐसा व्यक्ति जीवन में पुण्य का भागी होता है। ऐसे व्यक्ति को शारीरिक कष्ट होते हुए भी वह हमेशा खुश रहता है। लोगों को लगता है कि उसे बहुत कष्ट है लेकिन अन्दर से उस व्यक्ति मन प्रसन्न रहता है। पुण्य कर्म करने वाले व्यक्ति को इस बात गर्व रहता है कि उसने जीवन में कोई गलत कार्य नहीं किया। इसीलिए मन की शांति और निश्चिंतता ही उसकी सबसे बड़ी पूँजी होती है।

इसीलिए मनुष्य को हमेशा जीवन में पुण्य कर्म करने की आदत डालनी चाहिए और पाप कर्म से बचना चाहिए।