भगवान में सच्ची प्रेम भक्ति का स्वरूप क्या है

भक्त और भगवान का सम्बन्ध कैसा है, क्या भक्त भगवान से भी बडा हो सकता है? स्मरणीय तथ्य

भगवान में सच्ची प्रेम भक्ति का स्वरूप क्या है
Bhakta aur bhagwan

ॐ आनन्दमय ॐ शान्तिमय

ॐ आनन्दमय प्रभु पिता जी में सच्ची प्रेम-भक्ति का क्या स्वरूप है।

भगवान ने बताया कि

जो करे हमारी आस, उसका करता हूँ सर्वनाश।

इस पर भी जो नहीं छोड़ता मेरी आस,

उसका फिर मैं बन जाता दासानुदास।।

ऐसी स्थिति को प्राप्त भक्त यद्यपि भगवान की दृष्टि में भगवान से बढ़कर हुये, परन्तु भक्त भगवान को ही अपना इष्ट-स्वामी मानते हैं।

शुद्ध-पवित्र जीवन तो वही है जिसमें सदा सत्य का प्रकाश ही प्रकाशित रहता है, सत्य ही जीवन हो, सत्य ही भाव हो, सत्य का ही अनुभव हो, सत्य का ही मानव-विचार हो दर्शन, श्रवण हो, सत्य का ही कथन हो, सत्य का ही सुनना सुनाना हो। बस इसके अतिरिक्त जो है, सब असत्य, दम्भ, कपट, छल-छिद्र।

श्री गुरूवर की आश्चर्य-जनक कृपा की झलक पड़ गई। न मालूम कितने जन्म जन्मान्तर से पापमय कारनामों से भरी हुई जन्म-मृत्यु की फाइल चली आ रही थी, वह श्री गुरूदेव की कृपा से सदा के लिये बन्द हो गई।

श्री ब्रह्मवेत्ता, तत्त्वदर्शी श्री गुरू देव के अतिरिक्त इस ब्रह्माण्ड में अनन्त-जन्मों की पापमय कर्मों की डायरी को समाप्त करने की शक्ति और किसी में नहीं होती। इसलिये गीता ज्ञान के विधानाचार्य भगवान ने श्री गीता अ-४ के ३४ श्लोक में स्पष्ट कथन किया है, तत्त्वज्ञानी महापुरुषों के पास जाने के लिये।

अत: पापमय दु:खमय-अशान्तिमय से मुक्त होने का यही सरल-सुखमय सत्य विधान है, मार्ग है। इसके विपरीत दम्भ, कपट, पाखण्ड, छल-छिद्र के हजारों-हजारों व्यवसाय के धन्धे चल रहे हैं। श्री गीता अ०२ श्लोक ४१ और ४४।

ॐ आनन्दमय ॐ शान्तिमय

इस विशाल ब्रह्म-सृष्टि के अंधकार को केवल मात्र एक सूर्य का ज्योतिर्मय प्रकाश नष्ट कर डालता है और यह क्रम अनादिकाल से जब से इस सृष्टि की रचना ॐ आनन्दमय प्रभु पिताजी ने की है। दैनिक शक्ति के अंधकार को प्रात:काल सूर्य का जगमगाता प्रकाश नष्ट कर ब्रह्म मण्डल को चमका देता है। पृथ्वी से लेकर आकाश तक चमक जाता है। इतना ही नहीं विश्व के प्राणी-पदार्थों को, जीव-जन्तुओं को भी महान लाभ होता है, अकथनीय लाभ होता है। सम्पूर्ण वनस्पति विभाग का भी यही जीवन दाता है। परन्तु मानवी शक्ति का प्रकाश सीमित अंधकार का भी नाश नहीं कर सकता। अरबों करोड़ों विद्युत का प्रकाश केवल मात्र कुछ दायरे तक ही प्रकाशित रहता है।

इस प्रकार इस ब्रह्म-सृष्टि के प्रेमी-पदार्थों को मेरा-मेरी बनाने वालों का ज्ञान स्वयं के अज्ञानमय ज्ञान के अंधकार को नष्ट करने में आज तक असमर्थ होते आये हैं। सदा अज्ञानमय ज्ञान के अंधकार में ॐ आनन्दमय प्रभु पिताजी के दण्ड का तमंचा खाते रहते हैं।

परन्तु तत्त्वज्ञान के ब्रह्मदर्शी श्री महापुरुष भगवान एक सूर्य के अखण्ड ज्योतिमय प्रकाश की तरह संसार के घोर अज्ञानमय ज्ञान के अंधकार को नष्ट कर तत्त्वज्ञान की ज्योति का प्रकाश पैâला देते हैं, परन्तु इस तत्त्वमय ज्ञान के रहस्य को परम श्रद्धालू ही जानकर परम लाभ का अनुभव करते हैं। श्री गीता अ०७ श्लोक ‘‘मनुष्याणां सहस्रेषु’’ श्री गीता अ०४ श्लोक ३९- ‘‘श्रद्धावॉल्लभते ज्ञानं’’ ॐ शान्तिमय

स्मरणीय ज्ञान

  1. सद्गुण सदाचार सम्पन्न विद्यार्थी ही देश के भाग्य को उदय करने में समर्थ होंगे।
  2. सद्गुण-सदाचारी छात्र-छात्रायें भारत भाग्य विधाता, देश की सम्पत्ति हैं।
  3. नारा़ज होने की आदत, भारत भाग्य विधाता, छात्र-छात्राओं के, दिमाग की शत्रु हैं।
  4. काम-क्रोध, चिन्ता और नारा़जगी के त्यागी, वीरवर छात्र-छात्रायें बुद्धिमान होंगे।
  5. हम लोगों को ॐ आनन्दमय भगवान के विधान के अनुसार, अपने जीवन को सद्गुण-सम्पन्न सदाचारी ही बनाना चाहिये।
  6. किसी कार्य को करने के पहले ॐ आनन्दमय ॐ शान्तिमय भगवान को श्रद्धा-प्रेम पूर्वक, याद करना चाहिये।
  7. गुण, विद्या के उपासक ध्यानमग्न मानव आपसी कलह नहीं करते हैं।
  8. चेतावनीकिसी पर दोष-दर्शन करने का एवं किसी को आज्ञाकारी बनाने का हमारा अधिकार नहीं है। श्री गीता अ० १८ श्लोक ६१ ॐ शान्तिमय