सुप्रसिद्ध कवि आरसी चौहान की कविताएं
आरसी चौहान की सुप्रसिद्ध 12 कविताओं का संकलन यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है।
आरसी चौहान की 12 कविताएं
संक्षिप्त परिचय
आरसी चौहान (जन्म-08 मार्च 1979 चरौवां ,बलिया,उ0प्र0)
शिक्षा-परास्नातक-भूगोल व हिन्दी साहित्य,पी0जी0 डिप्लोमा पत्रकारिता,बी0एड0,यूजीसी नेट-भूगोल
सृजन विधा-गीत ,कविताएं,लेख व समीक्षा आदि
प्रसारण-आकाशवाणी इलाहाबाद,गोरखपुर एवं नजीबाबाद से
प्रकाशन - नया ज्ञानोदय, वागर्थ, कादम्बिनी, अभिनव कदम, इतिहास बोध, कृतिओर, जनपथ, कौशिकी, गुफ्तगू, तख्तोताज, अन्वेषी, निकट , हिमतरू , गाथान्तर , संकेत, सर्वनाम , जैन भारती , आज, हिन्दुस्तान ,दैनिक जागरण, प्रभात खबर, अमृत प्रभात, युनाईटेड भारत, गांडीव, डेली न्यूज एक्टिविस्ट एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाएं तथा ब्लागों में । संकेत 15 के कविता केंद्रित अंक में कविताएं प्रकाशित ।
अन्य-1-उत्तराखण्ड के विद्यालयी पाठ्य पुस्तकों की कक्षा -सातवीं एवं आठवीं के सामाजिक विज्ञान में लेखन कार्य
2- ड्राप आउट बच्चों के लिए राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की सामाजिक विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों का लेखन व संपादन
3- हिंदी साहित्य ज्ञान कोश, भारतीय भाषा परिषद -
पहला खंड : उत्तराखण्ड: लोक परम्पराएं व सुधारवादी आंदोलन
दूसरा खंड :सिद्धांत,अवधारणाएं और प्रवृत्तियां - प्रकृति और पर्यावरण
4- “पुरवाई” पत्रिका का संपादन
Blog - www.puravai.blogspot.com
1- बहुत दिनों से
“Bahut Deno Se” Poem by Aarsi Chauhan
बहुत दिनों से लिखना चाहता हूं
एक कविता
स्कूल जाते बच्चों पर
जो दुनिया को फूल की तरह
खिलाना चाहते हैं
और इकट्ठा हों रहे हैं
तमाम तमाम स्कूलों में
हर सुबह
हरसिंगार के फूलों की तरह
स्कूलों के फेफड़ों में
भर रहें हैं ताजी हवा से महकते
और स्कूल हो रहे स्पंदित
एक और कविता लिखना चाहता हूं
किसानों के लिए
जिनके हल के फाल तोड़ रहे सन्नाटा
कठोर चट्टानों के
फड़फड़ाते पन्नों पर
दर्ज कर रहे बीजों के एक एक अक्षर
ओर पृथ्वी को रंग देना चाहते हैं
हरियाई फसलों से
एक कविता और लिखना चाहता हूं
सरहद पर जूझते जवानों के लिए
जिनका होना
हमारे देश का सुरक्षित होना है
पर जो बच्चे
अभी स्कूलों से लौटे नहीं हैं
जिन किसानों का कलेवा
उनके हलक के नीचे उतरा नहीं है
घर वापसी के लाख वादों के बावजूद
जो जवान अब कभी लौट नहीं सकते
उन पर कविताएं न लिख पाने के लिए
क्षमा चाहता हूं देशवासियों।
2- बचपन में
“Bachapan Mein” Poem by Aarsi Chauhan
बचपन में एक दौर ऐसा भी था
कि निकल पड़ते साइकिल से
हवा से तेज उड़ियाते
छूने लटका हुआ आकाश
जहां धरती को चूम रहा होता
वह बे रोक टोक
बादलों को छूने की करते कोशिश
और उनकी खरगोश सी पीठ पर
बैठकर उड़ने की लालसा
रह जाती धरी की धरी
थक हार लौट आते अपने अपने घर
इस आशा में कि
कल तो छू कर ही लौटेंगे क्षितिज
बादलों की पीठ पर बैठ कर ही छोड़ेंगे दम
आज इतने सालों बाद
देखता हूं अपने बच्चों को
पानी में तैराते हुए कागजी नाव
और सोचता हूं
कि दुनिया घूमते हुए
कितना आगे निकल गई है
जबकि दुनिया है कि
घूम रही है बचपन के पीछे पीछे ।
3. ईश्वर की अनुपस्थिति में
“Ishwar Ki Anupasthiti Mein” Poem by Aarsi Chauhan
ऐसी हो धरती
जहां भोरहरी किरणों सा मुलायम
और मां की ममता की तरह
पवित्र हों आदमी
उनके अकुलाए हाथ
बनाने में हों माहिर
खुशियों का मानचित्र
हवाओं को लपेट कर
रख सकें सिरहाने
ऐसा हुनर हो उनमें
जीवन के घाटों पर
बांट सके एक दूसरे का सुख दुख
और जुड़ा सकें एक ही छाया तले
ऐसी हो धरती
ईश्वर की अनुपस्थिति में ।
4- खूबसूरत धरती के बारे में
“Khubsurat Dharati Ke Bare Mein” Poem by Aarsi Chauhan
वे लिख रहे हैं सदियों से
और नहीं लिख पा रहे हैं
आदमी को आदमी
वे लिखना चाहते हैं
नदियों को नदियां
और नदियां हो जा रही हैं रेत
वे पहाड़ों के बारे में भी
चाहते हैं लिखना
उनमें उगे जंगलों
और झाड़ियों के बारे में भी
कि
देखते ही देखते बदल जा रहे हैं
आग के गोलों में पहाड़
पृथ्वी को लिखना चाहते हैं पृथ्वी
कि पृथ्वी घूमते हुए
रणभूमि में बदल जा रही है
बच्चे जिनपर अभी तक लिखी गयी हैं
बहुत सारी कविताएं
उन्हें फूलों की तरह मुस्कराते
हिरन की तरह उछलते कूदते
खरगोश के बालों की तरह मुलायम
बताया गया है
यहां तक कि
ये बच्चे तो
दो देशों को बांटने वाली सरहदों को भी
नहीं जानते
बंदूक , बारुद और बमों से भी अनभिज्ञ
ये नहीं जानते
युद्ध में मारे गये अपने पिताओं
और उनके हन्ताओं को
छल कपट और ईर्ष्या द्वेष का गणित
तो बिल्कुल नहीं समझते
ये तितलियों की तरह उड़ना चाहते हैं
सपनों में परियों से बतियाना चाहते हैं
इनकी प्रार्थनाओं में
आदमी को देवता
नदियों को बलखाती हुई
पहाड़ों को आसमान चूमता हुआ
और पृथ्वी को लिखा है जननी
हम इनके भूगोल को कब समझ पायेंगे
और लिख पायेंगे एकदिन एक
खूबसूरत धरती के बारे में ?
5 - मजदूर
“Majdoor” Poem by Aarsi Chauhan
वे आत्महत्या नहीं करते
उन्हें पेट से आगे की दुनिया
भी नहीं दीखती
किसी लेबर चौराहे पर
अब तक नहीं देखा
जीवन से हार मानते
उसने नहीं की
गले में कभी फंदा डालने की जुर्रत
या कलाई की नसें काटने का प्रयास
सोचा भी नहीं होगा
सल्फास के बारे में
गाड़ियों के नीचे आ गया हो कभी
बेदम भूखे लड़खड़ाकर
पेट्रोल छिड़क कर तो कत्तई नहीं
किया अपने को खतम करने की कोशिश
मंड़ई जलने से जला हो कोई
अपने गोरु डांगर बचाने के प्रयास में
थकान मिटाने के नाम पर
पी लिया हो जहरीली शराब
किसी षड़यंत्र के तहत
और अब ये
कि इनके दम पर
जब भी बदला है पृथ्वी का भूगोल
खुबसूरत दीखी है पृथ्वी दूर तलक
पर दीखे नहीं मजदूर कहीं तक दूर दूर।
6-अकुलाया हाथ है पृथ्वी का
“Anukulaya hath hai Prithvi Ka” Poem by Aarsi Chauhan
उसके कंधे पर
अकुलाया हाथ है पृथ्वी का
एक अनाम सी नदी
बहती है सपने में
आंखों में लहलहाती है
खुशियों की फसल
मन हिरन की तरह भरता है कुलांचें
बाजार बाघ की तरह
बैठा है फिराक में
बहेलिया
फैला रखा है विज्ञापनों का जाल
और एक भूखे कुनबे का झुण्ड
टूट पड़ा है
उनके चमकीले शब्दों के दानों पर
पृथ्वी सहला रही है
अपने से भी भारी
उसके धैर्य को
धैर्य का नाम है किसान।
7-धरती से संवाद करते हुए
“Dharati Se Sanvad Karate Hue” Poem by Aarsi Chauhan
धरती से संवाद करते हुए
वह नापता है आंखों से
आसमान की दूरी
सीपियों के मुंह सा खुले
धरती के अकुलाये हराई में
स्वाती बूंदों सा
डालता है एक एक बीज
धरती को और चाकलेटी बनाते हुए
महसूसता है बीजों के अंखुआने की
कुलबुलाहट
अपने पसीने की बूंदों का
बादलों में बदलते हुए
देखता है खुशियों का इंद्रधनुष
जहां भूख ने आत्म समर्पण कर लिया है
और एक झण्डा
लहराने लगा है श्रम का।
8-जूता
“Joota” Poem by Aarsi Chauhan
लिखा जाएगा जब भी
जूता का इतिहास
सम्भवतः ,उसमें शामिल होगा कीचड़
और कीचड़ में सना पांव
बता पाना मुश्किल होगा
हो सकता किसी ने
रखा हो कीचड़ में पांव
और कीचड़ सूख कर
बन गया हो जूता सा
फिर देखा हो किसी ने कि
बनाया जा सकता है
पांव ढकने का एक पात्र
फिर बन पड़ा हो जूता
और तबसे उसकी मांग
सामाजिक हलकों से लेकर
राजनैतिक सूबे तक में
बनी हुई है लगातार
घर के चौखट से लेकर
युद्ध के मैदान तक
सुनी जा सकती है
उसकी चौकस आवाज
फिर तो उसके ऊपर गढे़ गये मुहावरे
लिखी गयी ढेर सारी कहानियां
और इब्नबतूता पहन के जूता
भी कम चर्चा में नहीं रही कविता
कितने देशों की यात्राओं में
शामिल रहा है ये
शुभ काम से लेकर
अशुभ कार्यो तक में
विगुल बजाता उठ खड़ा होता रहा है यह
और अब ये कि
वर्षों से पैरों तले दबी पीड़ा
दर्ज कराते ये
जनता के तने हुए हाथों में
तानाशाहों के थोबड़ों पर
अपनी भाषा,बोली और लिपि में
भन्नाते हुए......।
9-कितना सकून देता है
“Kitana Sakun Deta Hai” Poem by Aarsi Chauhan
आसमान चिहुंका हुआ है
फूल कलियां डरी हुई हैं
गर्भ में पल रहा बच्चा सहमा हुआ है
जहां विश्व का मानचित्र
खून की लकिरों से खींचा जा रहा है
और उसके ऊपर
मडरा रहे हैं बारूदों के बादल
ऐसे समय में
तुमसे दो पल बतियाना
कितना सकून देता है।
10-धर्म
“Dharm” Poem by Aarsi Chauhan
धर्म बिना गैस का चूल्हा है
जिस पर सेंकी जाती हैं
अफवाहों की रोटियां
बनाए जाते हैं खूंखार पकवान
और आदमी
मनाता है
इंसानियत खत्म होने का जश्न
जैसे जीत लिया हो उसने पूरी धरती।
11-मशीनों के खिलाफ
“Mashino Ke Khilaf” Poem by Aarsi Chauhan
चैता की धुन में
थिरकती गेहूं की बालियां को
थाहते हंसुए
तेज कर लिए हैं अपने दांत
मशीनों के खिलाफ
ताकि फिर कहीं कोई किसान
न मिले
लटकता हुआ।
12-नदियां
“Nadiyan” Poem by Aarsi Chauhan
नदियां पवित्र धागा हैं
पृथ्वी पर
जो बंधी हैं
सभ्यताओं की कलाई पर
रक्षासूत्र की तरह
इनका सूख जाना
किसी सभ्यता का मर जाना है।
संपर्क - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामुदायिक सहभागिता )
जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी , आजमगढ़ , उत्तर प्रदेश
276001
मोबाइल -7054183354 , 8858229760
ईमेल- [email protected]
Comments (0)