Bhagwan Se Prem Karane Me Panch Badhak Tattva

क्या कारण है कि भगवान हमारा साथ नहीं देते, भगवान हमसे प्रेम क्यों नहीं करते हैं, व्यक्ति और ईश्वर के बीच प्रेम में बाधक कौन हैं?

Bhagwan Se Prem Karane Me Panch Badhak Tattva
bhakta aur bhagwan

ॐ आनन्दमय ॐ शान्तिमय

भगवान से प्रेम करने में पाँच बाधक तत्त्व

-परमपूज्यनीय आनन्द किरन जी भगवन

ॐ आनन्दमय प्रभु पिताजी के अखण्ड आज्ञाकारी विधान मेंभगवान से प्रेम करने में अर्थात् ॐ आनन्दमय प्रभु पिताजी की लगन में बाधक पाँच तत्त्व बतलायें हैं।

आनन्दमय प्रभु लगन में यह पाँचों न सुहात।

विषय भोग, निद्रा, हँसी, जगत प्रीति, बहुबात।।

इन पाँचों में यदि एक भी है, तो वह प्रभु लगन में बाधक हो जायेगी। इसलिये श्री गीता अ०५ श्लोक २२ में कथन किया है। इन्द्रियजन्य विषय भोगों में रमने वाला बुद्धिमान नहीं है।

श्री गीता अ० १० श्लोक ८-९ में भगवान ने अपने बुद्धिमान प्रिय भक्तों के लक्षणों का वर्णन किया है। एवं श्री गीता अ०१८ श्लोक ५ में यज्ञ, दान, तप, कर्म बुद्धिमानों को ही पवित्र करते हैं।

भोग और योग एक साथ नहीं हो सकते। अंधकार और प्रकाश का सम्बन्ध एक साथ नहीं। शीतलता और गर्मी एक साथ नहीं रहती।

प्रकाश की तरफ पीठ देकर चलने से परछाई नहीं पकड़ी जा सकती। सत्य की तरफ पीठ देकर चलने से दु:खों का अन्त नहीं होगा।

ईर्ष्या-द्वेष, कलह, नारा़जगी के साथ प्रेम, प्रसन्नता, शान्ति, सन्तोष नहीं रह सकते। क्रोध के साथ दया नहीं रह सकती। दयाधर्म का मूल है पाप मूल अभिमान।

अखण्ड-विधान के निर्माता ॐ आनन्दमय प्रभु जी के आज्ञाकारी विधानों को धारण पालन करने वालों की सदा भगवत भावमय दृष्टि होती है। प्रेममय दृष्टि होती है। परन्तु ॐ आनन्दमय प्रभु पिताजी आज्ञाकारी विधानों के विपरीत चलने वालों की सदा राग-द्वेषमय दोष दर्शन की दृष्टि होती है। यद्यपि फल फूलों से भरे बाग-बगीचों का भी दर्शन होता है। परन्तु गीध की दृष्टि सड़-गले माँस पर ही होती है।

इस तरह से जो व्यक्ति सांसारिक विषय-भोग की वस्तुओं में रमें रहता है अर्थात उसका ध्यान सदा सांसारिक विषयों के भोगों में ही सोचती रहती है कि इस वस्तु का भोग कैसे करें, जो विषय उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं रहता उसका भी भोग करने की चेष्टा व्यक्ति करता है, ऐसा व्यक्ति भगवान के प्रेम से वंचित हो जाता है। और ऐसा व्यक्ति भी भगवान के भक्ति प्रेम को पाने में असफल होता है जो अपना अमूल्य जीवन का ज्यादातर समय निद्रा में व्यतित कर देता है। बेवजह इधर-उधर बैठकर जो व्यक्ति हमेशा हँसी-मजाक में समय को बर्बाद करता रहता है ऐसा व्यक्ति भी भगवान के प्रेम को पाने में सक्षम नहीं हो पाता। इन तीनों के अतिरिक्त जो लोग इस संसार के मोह-माया में पडे रहते हैं अर्थात इस जगत से प्रीति अथवा प्रेम रखते हैं, ऐसे लोगों से भगवान प्रेम नहीं करता। और आखिर में कहाँ गया है कि जो लोग हमेशा किसी बात को इधर-उधर बताकर चुगली करते रहते हैं, अपना अमूल्य समय बहुबात में व्यतीत करते हैं ऐसे लोगों से भी भगवान प्रेम नहीं करते। ॐ शान्तिमय

 ‘‘ॐ आनन्दमय ॐ शान्तिमय’’ योगसिद्ध महामंत्र का प्रभाव

श्रद्धा-प्रेम, विश्वास पूर्वक मन शुद्धि के लिये जप करने वालों के लिये होता है।

सत्य विरोधी, असत्यवादी का शीघ्र पतन होने का विधान है।

सत्य क्या हैयह संसार का दर्शन ॐ आनन्दमय भगवान का स्वरूप है। श्री गीता अ०६ श्लोक ३०, अ०१० श्लोक ४२।

असत्य क्या हैयह संसार का दर्शन केवल भोग दर्शन और अहंकारी बताने का स्वरूप है। श्री गीता अ०१६ श्लोक ८-९ एवं विस्तार से श्लोक १० से १८ तक)

श्री गीता अ०१३ में अन्तर्यामी ॐ आनन्दमय भगवान ने सत्य को ज्ञान और असत्य को अज्ञान कथन किया है। ज्ञान में जागने पर यह भगवत सृष्टि भगवत भावमय है। आनन्दमय और शान्तिमय है। असत्य वाला सदा अज्ञान में सोया रहता है। (अ० १३ श्लोक ११)।

सुसप्ती में होने वाले संसार का कोई महत्व नहीं; नाम, निशान नहीं होता है। हाँ जाने के बाद फिर मानव असत्य ज्ञान के संसार में सो जाता है। फिर सारे धर्म-कर्म असत्य दु:खरूप, नाशवान, क्षणिक होते हैं।  हाँ, जब ब्रह्म-वेत्ता तत्त्वदर्शी महापुरुषों की कृपा से ज्ञान जागता है। तब सत्य कर्म ही होते हैं। ॐ शान्तिमय