कार्तिक पूर्णिमा की व्रत कथा ।। Fast story of kartik poornima

Kartik Purnima Vrat ki pauranik katha kya hai, ke bare mein es article mein bataya gaya hai, kartik purnima ki vrat katha ko janane ke liye es lekh ko padhen.

कार्तिक पूर्णिमा की व्रत कथा ।। Fast story of kartik poornima
Kartik Purnima ki vrat katha

कार्तिक पूर्णिमा की व्रत कथा

प्रिय श्रद्धालुओं आइये मैं आपको कार्तिक पूर्णिमा के व्रत की कथा सुनाता हुँ जिससे आप जान सकेंगे कि कार्तिक पूर्णिमा का व्रत कितना महत्वपूर्ण है- एक बार की बात है त्रिपुर नामक राक्षस ने प्रयागराज में एक लाख वर्ष तक घोर तप किया। उसके इस घोर तप के कारण और उसके प्रभाव से समस्त जड़ चेतन, जीव तथा देवता बहुत भयभीत हो गये कि कहीं यह राक्षस हम सब पर एकाधिकार न कर ले और जिससे समस्त जड़-चेतन, जीव-जन्तु पर अन्याय न करने लगे। देवताओं ने उस त्रिपरा नामक राक्षस के तप को भंग करने के लिए अप्सराएं भेजने लगे, लेकिन उन अप्सराओं का उस राक्षस के तप पर कोई प्रभाव न डाल सका। आखिरकार अन्त में स्वयं ब्रह्मा जी को स्वयं उसके सामने प्रकट होना पड़ा और ब्रह्माजी ने उसे मनचाहा वर मांगने के लिए आदेश दिया। ब्रह्माजी को स्वयं के समक्ष पाकर वह राक्षस बहुत प्रसन्न हुआ और उसने ब्रह्माजी से वरदान मांगा कि- न देवताओं के हाथों मरूं, न मनुष्य के हाथों।

ब्रह्माजी ने उस राक्षस को ऐसा ही वरदान दे दिया और वे चले गये। ब्रह्माजी से ऐसे अमरत्व वाले वरदान को पाकर वह राक्षस बिल्कुल निडर हो गया और लोगों पर इस वरदान के बल पर अत्याचार करने लगा। लोगों पर अत्याचार करने से ही वह नहीं माना बल्कि उसने एक दिन कैलाश पर्वत पर भी छढ़ाई कर दी, जहाँ पर भगवान शंकर तप किया करते थे। कैलाश पर चढ़ाई करने के बाद उस राक्षस और भगवान भोलेनाथ में घमासान युद्ध छिड़ गया। अंत में शिवजी ने ब्रह्मा तथा विष्णु की सहायता से उसका संहार कर दिया। तभी से इस दिन का महत्व बहुत बढ़ गया। इससे हमें यह सीख भी मिलती है कि किसी चीज की यदि हमारे पास अधिकता हो जाये तो कभी उसका दुर्पयोग अथवा अहंकार नहीं करना चाहिए। बल्कि संचय का उपयोग सार्थक कार्यों और लोगों की भलाई में ही व्यय करना चाहिए।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्षीर सागर दान का बहुत माहात्म्य है। इस दान को करने के लिए विधि यह है कि कोई भी बर्तन जो 24 अंगुल का हो, उसमें दूध भर लेना चाहिए और अपने सामर्थ्य के अनुसार स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किसी ब्राह्मण को दान कर दिया जाता है। इस पूर्णिमा को दीपावली की तरह ही सायंकाल दीप जलाकर मनाना चाहिए।

-नन्द लाल सिंह शाश्वत