ANNO- समाज के संवेदनहीनता को उजागर करती कहानी

अजय कुमार पाण्डेय द्वारा लिखित हिन्दी कहानी- अन्नो, समाज से विरक्त ऐसी महिला की है जिसकी रेलवे प्लेटफार्म पर मौत हो जाती है और उसके प्रति लोगों की संवेदहीनता किस तरह दिखती है, इस कहानी में व्यक्त किया गया है।

ANNO- समाज के संवेदनहीनता को उजागर करती कहानी
Ajay Kumar Pandey Ki Kahani Anno

अन्नो (ANNO)

- ‘Anno’ a hindi story by Ajay Kumar Pandey

तिरुपति बाला जी के लिये गुडूर स्टेशन से ट्रेन बदलनी थी, साथ में मेरा परिवार था। गंगा-कावेरी हमने छोड़ दिया। गुडूर से तिरुपति का सफर तीन घण्टे का था। हावड़ा तिरुपति एक्सप्रेस का समय १२ बजे का था। गंगा कावेरी हमें ८ बजे ही पहुंचा दी। मेरे पास ४ घन्टे का समय था। स्टेशन पर उतर कर हम सभी ने मंजन आदि किया, चाय नास्ता लिया बैठ कर आपस में बातचीत कर रहे थे। प्लेट फार्म नं. दो पर का़फी भीड़ देखकर उत्सुकता जागी कि वहां क्या हो रहा है। मैने एक संभ्रान्त व्यक्ति से पूछा-ह्वाट इज देयर? उसने कहा- देयर इज अ मैड वीमेन हैड डाइड। सुनकर सोचने लगा कि यह तो स्टेशन है बहुत से लोग आते जाते हैं पागल भिखारी भी रहते हैं। मन कुछ देर के लिये शान्त हो गया, पर न जाने यकायक मन में विचार आया कि चलो समय है देख कर आते हैं, लाश किसकी है।

मैंने बच्चों से कहा अभी आता हूँ रेलवे ट्रैक लाँघकर उस प्लेटफार्म पर चला गया, जहां भीड़ लगी थी। मै भी भीड़ को चीरता हुआ उस लाश तक पहुंच गया। लावारिश लाश पड़ी थी उसके पास केवल तमाशबीन ही आते, देखकर चले जाते। उस लाश को देखने से लग रहा था कि इस पगली को मरे १२ घण्टा से भी ज्यादा हो गया है फिर भी रेलवे प्रशासन अथवा पुलिस विभाग ने अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं किया था। यहाँ तक कि लोग भी केवल आते और देखकर चले जाते थे, किसी भी व्यक्ति में यह मानवता नहीं जागी कि उस नग्न औरत की लाश पर फटा कपड़ा ही डाल देता। यह देखकर मैं स्तब्ध रह गया कि दूर से एक पागल आया कुछ देर खड़ा निहारता रहा फिर इधर उधर देखा कूड़े से गन्दे पेपर बिनकर लाया और लाश पर जाकर उसको ढक कर चला गया, परन्तु एक हवा के झोंके ने उस गन्दे पेपर को हटा दिया। लगा जैसे उस लाश ने अपने ऊपर इस संसार के सारे भाव संवेदना तथा आवरण को नकार दिया हो। 

यह संसार है भावनाओं का माने तो सच नहीं तो सब असत्य है। उस पगली की सूरत देखकर मुझे एक अजीब सी उलझन हुई। अनजानी-सी संवेदना मन ने पूछा अरे तुमयहाँ कहाँ! आखों से आंसू छलक पड़े रुमाल निकाल कर मैने जल्दी से अपने को संयमित किया आंसू पोछता हुआ लौट आया कि कोई मुझे देख न ले। वापस आया तो पत्नी ने मेरी आंखे लाल देखी पूछा क्या हुआ, आंख में कुछ पड़ गया क्या? रुमाल से आंख पोछते हुये मैंने कहा नहीं उस पगली की लाश को देखकर न जाने क्यों मन बोझिल हो गया।

पत्नी ने भी मुझे जैसे विवश देखा सांत्वना देते हुये कहने लगी यह संसार है इसका संचालक भगवान है सब उसकी मर्जी से होता है हम आप तो कठपुतली हैं। पत्नी के दार्शनिक शब्दों को सुन कर मेरी भी भावना बदली मन सामान्य हुआ। थरमस से पानी निकालकर पत्रिका पढ़ने लगा। अभी भी गाड़ी आने में दो घण्टे थे। एक बार एनाउन्स हुआ। हावड़ा तिरूपति अपने समय से एक घण्टा देरी से चल रही है सुनकर मन खिन्न हुआ लेकिन इन्त़जार के सिवा कोई, रास्ता नहीं था । इस औरत को शायद मै जानता हूँ इससे वैâसे परिचय है जानने के लिए शान्त ज्वालामुखी की राख में ढूढ़ने का प्रयास करने लगा जो समय के गरम लावे में जलकर भस्म हो चुका है फिर भी मन यादों की अतल गहराई में डुबकी लगाकर एक एक तिनके हटाकर उस सूरत की पहचान का प्रमाण ढू़ँढने का प्रयास करने लगा । बीते जीवन के शुरुआती दिनों की एक फाईल जो अतीत के रिकार्ड में भी खत्म हो चुकी है उसके कुछ फटे-पुराने अवशेषो में झाँकने का प्रयास करने लगा शायद इसमें कोई परिचय मिल जाय । गुमसुम देख पत्नी ने कहा, कहाँ उलझ गये जब से वह लाश देख कर आये हो जैसे आप की बहुत अजीज थी, बड़ा गहरा संबन्ध था क्यों न उसके घर वालों को खबर कर देते। मेरी पत्नी के शब्दो में कुछ व्यंग्य था पर भाव में स्पष्ट था कि बेकार सोचते हो वह आप की कोई नही लगती । मेरी चुप्पी पर समझाते हुये कहा सोचो आप अपने गाँव से १५०० किलो मीटर दूर दूसरे प्रदेश में जहाँ कभी आप का आना नही इधर आप का कोई रिश्तेदार भी नही है, दर्शन के लिये आये हैं, दर्शन करते हैं, आप की भावुकता मात्र एक भावना तथा भ्रम है कि उसे पहचानते हैं । शायद मेरी पत्नी सत्य कह रही थी वह मेरी केवल भावना थी । मैने अपने मन को झिड़कते हुये इंक्वायरी में जाकर गाड़ी का पता लगाया -गाड़ी दो घण्टे लेट हो गयी थी। १२ बज चुके थे, बड़ी ऊब-सी लग रही थी, टहलते हुये एक टी-स्टाल वाले से पूछा- यह जो पगली मर गयी क्या यहीं की थी? चाय वाला हिन्दी समझता था, उसने मेरे प्रश्न के बाद पूछ लिया- कहां से आये हो? मैंने कहा- इलाहाबाद से। चाय वाले ने कहा- मैं भोपाल का हूँ। उस चाय वाले से मिलकर अच्छा लगा। उसने कहा यह पगली भी उत्तर प्रदेश की थी। कहां की थी? मालूम नहीं पर वह हिन्दी खूब बोलती थी। उसे इधर हमने चार महीने से देखा था। वह चुपचाप प्लेट फार्म पर झाड़ू लिये बुहारती रहती थी। लोग पूछते तो वह केवल हँसती और नाचने लगती। उसको एक दिन भजन गाते हुये सुना जो कि मीरा का पद था तो मुझे लगा कि यह हिन्दी जानती है उस दिन मैने उसे चाय दिया प्रेम से पूछा कहाँ से आई हो । उसने कहा था -प्रयाग राज से, बाला जी ने बुलाया है उनका घर गन्दा हो गया उसे साफ करना है कह कर ढुमुक -ढुमुक कर भजन गाने लगी थी । तभी से मुझे लगा था कि वह उत्तर भारत की है। दिमा़ग ही तो है कह कर चाय वाला चुप हो गया । उसकी बात सुनकर मेरी शंका और भी प्रबल हो गयी ।मन फिर उलझा गया,सम्पर्क सूत्र ढूँढने में बार-बार उलझता यादों के एक-एक पन्ने पलटता । मन को एक बहुत पुरानी बात जिसका कोई सम्बन्ध मेरी इस सोच से दूर तक ताल मेल नही खा रही थी फिर भी उसमें उलझने लगा उसकी एक-एक घटना का क्रम मिलाने का प्रयास करने लगा मै भी उस क्षत-विक्षत यादों के पलों को एक-एक कर के संजोने का प्रयास करने लगा ।

आज से ५० साल पहले दादी के साथ मामा के लड़के शादी में मामा के गाँव सरैनी गया था । शादी का घर था दूर-दूर से रिश्तेदार आये थे। हम और दादी पानी पी रहे थे, एक लड़की बड़ी प्यारी सलोनी सी हाथ में मेंहदी लगाये हुये आई, दादी को देखकर कहा बुआ प्रणाम आप आ गईं हम दो घण्टे पहले आयें हैं, अम्मा भी आई है, आते ही आप को पूछ रही थी, ढेर सारे प्रश्न करके वह लड़की मेरी तरफ मुखातिब हुर्ई दादी से पूछने लगी यह कौन है बुआ।

मेरे सिर पर हाथ फेरते हुये दादी बड़े गर्व से कही मेरा बड़ा प्यारा बेटा है कक्षा आठ में पड़ता है नाम ‘‘रज्जन’’ है

मै वहाँ पहली बार गया था जिसने देखा दादी से मेरा परिचय पूछा। वह लड़की मेरा परिचय जान कर चली गयी, परन्तु मेरे भी मन में उसे जानने की चाह प्रबल हुयी दादी से पूछा यह कौन थी? दादी मुझे देखते हुये कहने लगी बड़ी प्यारी है, इसका नाम अनुराधा है मेरी बड़ी भाभी की बहन की लड़की है इसके पिता की मृत्यु हो चुकी है।

़ज्यादा समय नही लगा हम भी उन्हीं बच्चों के साथ घुलमिल गये। शाम को बरात जाना था सब लोग बरात चले गये कुछ बच्चे भी गये परन्तु दादी हमें नही जाने दी हम घर पर रुक गये। शाम हो चली थी घर के सभी मर्द बरात चले गये थे केवल औरत बच्चे ही थे घर की सुरक्षा की चिन्ता थी। मामा घर देखने के लिये चौकीदार सहेज गये थे फिर भी मामी ने रात भर जगने का प्रोग्राम बनाया। नाच, गाना, स्वांग रचाया, रात भर मस्ती होती रही। मैंने भी अपनी पाठ्य पुस्तक की कविता सुनाई। अनुराधा ने भी एक भजन गाया था बड़ा सुन्दर भजन था मुझे आज भी याद है। भजन के बोल थे जमुना तट पर कान्हा तेरी राह निहारे राधा रे। बिन तेरे यह पनघट सूना व्याकुल तेरी राधा रे। चाँदनी रात थी, रातभर नाच गाना होता रहा। सुबह सभी लोग कुछ देर से जगे। सुबह -सुबह अनुराधा नाश्ता लेकर आई सामने वड़े प्रेम से रखते हुये, शरारत भरे शब्दों से कहा– ‘लो रज्जन बाबू बुआ ने जलपान भिजवाया है।उसका नाम लेना मुझे बड़ा भला लगा।  एक सुखद सिहरन-सी मन में दौड़ गयी। तीसरे दिन बारात लौट आई, बहू भी आ गयी। धीरे-धीरे एक-एक कर के सम्बन्धी विदा-होने लगे। उत्सव का घर सूना होने लगा। हमें आये हुय दस दिन हो गया था दादी ने कहा कल हम लोग चलेंगे, अनुराधा भी कल ही जायेगी, अपना समान सहेज लेना। कल अनुराधा अलग हो जायेगी यह बात अच्छी नही लगी। शाम हो रही थी मैंने अपने कपड़े तह किये दादी की धोती तह कर बैग में रख लिया। छत के ऊपर कमरे में हम और दादी बैठे थे। खिड़की खुली थी चाँद कुछ देर से निकला था उसकी धीमी रोशनी आ रही थी, कमरे के आगे छत खुली थी, एक चारपाई बिछी हुयी थी, हम और दादी आपस में बात कर रहे थे कि अनुराधा की मम्मी आकर बैठ गयी साथ में अनुराधा भी थी। कहने लगी दीदी, अनुराधा की शादी तय हो गयी है अगहन में तिथि निश्चित हुयी है आदमी भेजूंगी जरूर आईयेगा। दादी ने भी कहा जरूर आऊँगी अपनी प्यारी अनुराधा की शादी मै न आऊँ वैसे मेरे इस रज्जन की बात शुरू हो गयी है। कई लड़की वाले आ चुके है एक रामपुर की लड़की है वे लोग बहुत जोर बाँध रहें है उसी माह में तिथि न पड़ी तो जरूर आऊँगी। बात खत्म हो गयी सब लोग सोने चले गये। सुबह हमलोग तैयार होकर अपने-अपने रास्ते चल दिये। चलते-चलते अनुराधा ने कहा बुआ के साथ रज्जन तुम भी चले आना अच्छा लगेगा।

अनुराधा तुम्हे हम वैâसे बुलायें अभी तो हमारी बात ही चल रही है फिर भी दादी से कहकर जरूर बुलाऊंगा तुम भी आना। अनुराधा हँस पड़ी थी मैं वैसे आऊंगी तब तक मेरी शादी हो जायेगी। मुझको भी हँसी आ गई। उसने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाते हुये कहा मेरा नाम अनुराधा ही नहीं देखो क्या लिखा है। ‘‘अन्नो’’। यह नाम मेरे बाबू ने मेरे हाथ पर लिखवाया था। अन्नोहँसती हुई चली गई। मैं भी दादी के साथ अपनी राह चला आया। परन्तु अन्नो याद आती रही फिर भूलती चली गई। यादों से दूर बहुत दूर जीवन में फिर कभी कहीं उसका जिक्र ही नहीं आया। दादा-दादी, मामा-मामी सभी लोग संसार छोड़कर चले गये पर न जाने क्यों यह कहानी आज याद आ गई। उस लाश से अन्नो का चेहरा मिलता था।

क्या वह पागल हो गई होगी ऐसा नहीं हो सकता, वह आनन्द से होगी। उसका अपना परिवार होगा पर हो सकता है कोई परिस्थिति आई हो! नहीं, यह मेरा भ्रम है मैने मन को झटका जैसे कोई बुरा सपना देख लिया हो। भूलने का प्रयास करने लगा।

दिन के दो बज चुके थे पुलिस वालों ने उस लाश को बोरे में भर कर सील करके पंचनामा तैयार कर ठेले पर लाद दिया। मेरी भी गाड़ी दूर सिग्नल पार से आती दिखाई देने लगी, सामान लेकर खड़ा हो गया। उस जाती हुई लाश के हाथ पर क्या नाम लिखा था नहीं पढ़ सका धीरे-धीरे सब ओझल हो गया पर मेरी शंका बीच-बीच में प्रबल हो जाती कही वह अन्नो तो नहीं थी मेरी पहचान की, परन्तु यह सच था कि वह कोई अन्नो ही थी।

-अजय कुमार पाण्डेय की हिन्दी कहानी- अन्नो