देवोत्थान एकादशी की कथा (Devotthan Ekadashi ki Katha)

Devotthan Ekadasi ki Katha ko janane ke liye es article ko pura padhen. Esme Devotthan Ekadasi ki Pauranik Katha ka vistar se varnan kiya gaya hai.

देवोत्थान एकादशी की कथा (Devotthan Ekadashi ki Katha)
Devotthan Ekadasi ki Katha

देवोत्थान एकादशी की कथा (Devotthan Ekadashi ki Katha)

पाराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है भगवान विष्णु जी से माता लक्ष्मी ने कहा कि- हे नाथ ! जब आप जागते हैं तो दिन रात जागते हैं और सोते हैं तो दिन रात सोते हैं। जब आप जागते हैं तो सारा जग सुखमय और सुन्दर हो जाता है और सोते हैं लाखों-करोड़ों वर्ष सोते हैं जिसके दौरान जग दु:खमय और अशान्तिमय हो जाता है। आपके सोने के दौरान समस्त चराचर का नाश भी हो जाता है। इसलिए हे नाथ !  आप यदि प्रति वर्ष अपने सोने-जागने का नियम बना लें तो समस्त चराचर सुखमय रहेगा और मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाया करेगा। लक्ष्मी जी की बात सुनकर भगवान विष्णु मुस्कुराने लगे और बोले- हे देवी ! तुम्हारा विचार अति उत्तम है, मेरे जागने से समस्त देवगणों को और विशेषत: आपको बहुत कष्ट होता है। और इस प्रकार मेरी सेवा करने के कारण आपको जरा अवकाश अर्थात विश्राम का समय नहीं मिल पाता, इसलिए आपकी बात को मानता हूँ और आपके कथनानुसार आज से मैं प्रति वर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूँगा। इस दौरान आपको और समस्त देवतागणों को अवकाश होगा। प्रतिवर्ष की यह चार माह की निद्रा मेरी अल्पनिद्रा कहलायेगी और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। भगवान नारायण ने कहा कि मेरी इस अल्पनिद्रा के दौरान जो भी भक्त मेरी सेवा करेगा अर्थात सेवा की भावना से कोई उत्सव और पुण्य करेगा मैं आनन्दपूर्वक मैं और आपके साथ (विष्णु-लक्ष्मी) उसके घर विराजूगाँ। इसलिए भक्तों को चाहिए कि देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी के इन चार माह के दौरान भगवान विष्णु की स्तुति और सेवा करनी चाहिए। जिससे कि भगवान प्रसन्न होकर देव उठनी एकादशी के जागने के बाद आपके घर विराजने का मौका मिल सके। इस तरह आपकी श्रद्धा भक्ति से भगवान विष्णु औऱ माता लक्ष्मी का आपके घर में वास हो सकेगा। ऐसी मान्यता है।

-नन्द लाल सिंह “शाश्वत”