सिसकता संसार- Sisakta Sansar a Hindi Kahani

अजय कुमार पाण्डेय की हिन्दी कहानी 'सिसकता संसार' संसार के विभिन्न पहलुओं का चित्रण करती हुई एक आदर्श प्रस्तुत करती है।

सिसकता संसार- Sisakta Sansar a Hindi Kahani
Sisakata Sansar Hindi kahani by Ajay Kumar Pandey

सिसकता संस्कार ( Sisakata Sansar)

-‘Sisakta Sansar’ hindi Kahani by Ajay Kumar Pandey

मेरे पड़ोस में एक मकान खाली था। अभी कुछ दिन पहले किराये पर एक मिश्रा जी का परिवार आकर रहने लगा था। परिवार बहुत बड़ा नहीं था दो लड़का एक लड़की मिश्रा जी और उनकी पत्नी। बड़ा लड़का डॉक्टर था, छोटा बी-टेक कर चुका था, लड़की डॉक्टरी पढ़ रही थी वह बाहर ही रहती थी। बड़ा सुसभ्य परिवार था। आते ही उनका पूरे मोहल्ले में सबसे अच्छा व्यवहार हो गया, बड़ा लड़का डॉक्टर था, शहर में क्लीनिक भी करता था। उसे जानने वाले मरी़ज यहाँ पर भी आने लगे थे। मोहल्ले के लिये तो जैसे वरदान-सा हो गया था। रात-विरात कोई भी परेशानी होती, लोग पहुँच जाते, ऐसा स्वभाव कि वे लोग किसी को मना भी नहीं करते थे, यथा सम्भव सहायता करते। मिश्रा जी हिन्दी साहित्य के विद्वान थे, उनके यहाँ साहित्यकारों का भी आना-जाना रहता।

एक शाम जीप में पाँच-छ: आदमी एक औरत के साथ उनके घर पर आये, उस समय मिश्राजी घर पर नहीं थे, बड़ा लड़का अपनी क्लीनिक पर जाने को तैयार था। गेट खुला था वे लोग सीधे उनके बैठक में पहुँचकर डॉक्टर से उलझ गये, कमरे का सारा सामान इधर-उधर फेंकने लगे, डॉक्टर के प्रतिरोध करने पर वे लोग डॉक्टर को मारने-पीटने लगे वह अकेला क्या करते मिश्रा जी की पत्नी, छोटा लड़का बाहर निकल कर बचाव के लिये चिल्लाने लगे। जब लोग सुनकर दौड़े तो उसमें एक अधेड़ व्यक्ति गेट पर खड़ा होकर कहने लगा परिवार का मामला है बातचीत करने आये हैं कोई झगड़ा नहीं हो रहा है। साथ में आई औरत भी चिल्ला रही थी मेरा जीवन बर्बाद कर दिया, मेरे साथ बड़ा अन्याय हुआ है। उन लोगों ने डॉक्टर का गला दबा रखा था। किसी तरह डॉक्टर अपने को छुड़ाकर गेट की तरफ भागे बचाव के लिये चिल्लाये, ये लोग मार डालेंगे तब तुम लोग आओगे सुनकर लोगों की भीड़ गेट के अन्दर आ गई तब उसमें से एक हिप्पी-कट बाल रखाये जो गाली और मार-पीट कर रहा था, चिल्लायाहम इसके साले हैं इसने हमारी बहन को छोड़ रखा है उसे लाता नहीं है उसके साथ अन्याय करता है। हम लोग बातचीत के लिये आये हैं। सुनकर भीड़ ने कहा इस तरह बातचीत की जाती है, घर पर कोई है नहीं यह लड़का अकेला आप सब बिना बताये आकर मारपीट करने लगे घर का सामान तोड़ दिया। यह कैसी बातचीत है। तुम लोग तो डकैतों की तरह हो। भीड़ देखकर वे लोग सकपका गये। तब तक खबर पाकर मिश्रा जी भी आ गये उनके साथ कई सम्भ्रान्त लोग भी थे। उनके आने पर भी वे लोग अधेड़ आदमी चेलेन्ज देते रहे। मिश्रा जी तथा उनके साथ के लोगों ने शान्ति से काम लिया उलझने के बजाय उन्हें बैठाया। सारी बातें सुनी। उस व्यक्ति ने बताया मेरी लड़की इनके लड़के को ब्याही है।

मिश्रा जी के एक साथी रामचन्द्र सिंह ने पूछा पण्डित जी यह कैसा रिश्ता निभा रहे हैं। आपने यह रिश्ता तो देख सुन जान समझकर किया होगा यदि ये लोग अच्छे नहीं थे तो क्यों किया रिश्ता फिर शादी को दस वर्ष हो गया अभी तक कोई कमी नहीं थी अब क्या हो गया जो इतना बुरा हो गया।

आप कौन हैं अहम और क्रोध में भरकर पण्डित जी बीच में ही उत्तर देने के बजाय प्रश्न कर बैठे।

मैं मिश्रा जी का दोस्त हूँ यहीं पर इंजीनियर हूँ मेरा नाम रामचन्द्र सिंह है। हमें मालूम हो गया कि आप डॉक्टर के ससुर हैं। अभी जो आपने अपने लड़कों को लेकर कृत्य किया यह अच्छा नहीं किया। रिश्ते इस तरह नहीं होते।

मुझे रिश्ते की बात न बतायें, मैं लड़की वाला हूँ बहुत सह लिया। इस घर में मेरी लड़की को सोने के लिये चारपाई तक नहीं है, यहाँ मेरी लड़की खाना बनाती, बर्तन माँजती है, कोई सुख नहीं है। गर्व में फूलते हुए पण्डित जी ने कहा।

बिना देखे आप ने शादी तो किया नहीं सब कुछ पहले देखा-सुना होगा ये लोग इतने गरीब थे आप अमीर थे तो किसी राजा के यहाँ शादी किये होते। इसमें इन लोगों की क्या गलती? रामचन्द्र सिंह जी ने कहा

हो जाता है राजा की लड़की रंक के घर ब्याह उठती है अन्जाने में।

आप जानते थे, अमीर थे, राजा थे क्यों ऐसी भूल किया? गलती की तो उसे निभाना भी पड़ेगा।

हमने इन्हें क्या नहीं दिया सब कुछ दिया

सब कुछ दिया जो बा़की था उसे आज दे दिया, व्यंग्य भरे लह़जे में रामचन्द्र ने कहा। आप हमारा स्टेटस नहीं जानते मैं तीन का ब्राह्मण हूँ, पण्डित जी ने कहा।

जान गये पण्डित जी आप का स्टेटस क्या है, कितने ऊँचे ब्राह्मण हैं। आप केवल यह बताये अभी जो आप ने किया क्या उचित है? हाँ, न में जवाब दीजियेगा।

ऐसा है मेरी लड़की के साथ बड़ा...

बीच में ही रामचन्द्र सिंह बोल पड़े– ‘‘पण्डित जी केवल हाँ, न में बताईये। गाथा नहीं वह तो समझ में आ गया अन्याय कौन कर रहा है और कौन सह रहा है।’’

ऐसा है यह जो हुआ एसउचित था तमतमाकर पण्डित जी ने कहा।

कुछ देर सभी लोग चुप रहे पण्डित जी इतने गिरे संस्कार और विचार के हैं, किसी को विश्वास नहीं हुआ। रामचन्द्र जी ने कहा फिर पण्डित जी कोई बात नहीं जो आप कर रहे हैं वह तो उचित ही है फिर मिश्रा जी भी जो करे वह उचित ही होगा। यदि उचित की यही परिभाषा है तो कहकर रामचन्द्र चुप हो गये।

उठते-उठते पण्डित जी ने कहा मिश्रा जी यदि आप की तऱफ से पुलिस आती है तो हमारी तऱफ से सैकड़ों वकील खड़े होंगे।

यह बात सुनकर एक सम्भ्रान्त व्यक्ति ने कहा पण्डित जी आपकी तरफ से सैकड़ों खड़े होंगे तो इनकी तऱफ से हजारों खड़े हो जायेंगे तो

आप कौन हैं शायद हमें जानते नहीं पण्डित जी गुर्राते हुये बोले।

उस व्यक्ति ने कहा जान गया आप को यह तो मिश्रा जी जैसे सज्जन व्यक्ति की बात है हमारी बात होती तो आप अब तक जानने लाय़क न होते पण्डित जी

आगे और बात बढ़ती मिश्रा जी ने बीच में शान्त करते हुये कहा ऐसा है पण्डित जी अब आप जाइये स्थिति कोई बद्तर रूप ले अच्छा नहीं होगा क्योंकि आप इस समय गलती भी करके उसी को अहम और क्रोध का जामा पहना रहे हैं उचित नहीं है कृपा करके जायें।

वे लोग चले गये पता चला कि डॉक्टर की औरत आधुनिक ख्याल की है इनके साले-ससुर भी उसी ख्याल के हैं। डॉक्टर की औरत को स्वच्छन्द घूमना, होटलों में खाना, आमदनी से ज्यादा खर्च करना, शान शौकत के लिये जेवर तक बेच देना भारतीय संस्कार, संस्कृति की कोई परवाह न करना उसकी इस स्वच्छन्दता में उसके भाई-बाप का सहयोग देना, उसकी माँ अर्धपागल, कोई संस्कार नहीं, थोड़ी-सी बात पर घर छोड़कर मैके चले जाना, वहाँ उसके भाई, बाप का पूरा सहयोग इन सब कारणों से पिछले एक साल से डॉक्टर की औरत अपने बाप के घर पर ही रहती है। डॉक्टर के बुलाने पर भी नहीं आती, उस रोज न जाने क्या सुलह-समझौता करने आई थी जो कृत्य हुआ उससे लगा वे लोग निहायत बद्तमी़ज किस्म के हैं। यह घटना घटे महीनों बीत गये कई दिनों तक मोहल्ले का माहौल नीरस रहा, मिश्रा जी का पूरा परिवार शर्म से तार-तार रहा धीरे-धीरे माहौल सामान्य हुआ।

एक दिन सुबह-सुबह मार्निंग वाक पर निकला था कि हनुमान मन्दिर पर रुक कर मैंने आराध्य की प्रार्थना किया पलट कर देखा तो एक दाम्पत्य जोड़ा नई अल्टो से उतर कर प्रभू को नतमस्तक था। थोड़ा-सा हट कर मैं सैर पर चल दिया, दो-चार कदम ही चला था कि एक आठ वर्ष का लड़का स्कूल के यूनिफार्म में उस जोड़े को बड़ी ही एकाग्रता से देख रहा था। ऐसा होता है उस पर हमने ध्यान नहीं दिया। यह एक सामान्य बात थी रोज होती है। नई नवेली जोड़ी को कोई भी अपलक निहार सकता है। न जाने क्यों यह बात मेरे विचारों में तीन-चार बार आई फिर धीरे-धीरे विस्मृत हो गई। मेरा छोटा लड़का एक क्रिश्चियन स्कूल में पढ़ता है आज उसके स्कूल में पैरेन्ट्स डे था। इस दिन के लिये मेरी पत्नी तथा बच्चे ने कई दिनों से श़ख्त हिदायत दे रखी थी कि आपको छुट्टी लेकर मेरे साथ स्कूल चलना है मैंने इसे आदेश के रूप में लिया सो कार्यालय से अवकाश ले रखा था। नियत समय पर हम लोग स्कूल पहुँच गये स्कूल का पूरा प्रांगण सजा था, बच्चे अपने माता-पिता के साथ रंग बिरंगी पोशाक में आ रहे थे बच्चे अपने-अपने दोस्तों का माता-पिता से परिचय कराते आनन्द मना रहे थे। मेला जैसा लग रहा था। तब तक दूर से अकेले आते हुये मेरी निगाह उस बच्चे पर पड़ी जो कुछ दिन पहले हनुमान मन्दिर पर मुझे दिखा था। उसकी तऱफ अनायास ही आकर्षित हुआ, कुछ देर मन मंथन भी हुआ फिर भूल गया पर मन कुछ जानने के लिये बेहाल-सा हुआ। उसके पास पहुँचते ही मेरे बच्चे ने मेरी उंगली खींचते हुये कहा- ‘‘पापा यह मेरा दोस्त है।’’ मैं अपनी व्यग्रता नहीं रोक पाया जल्द ही पूछ लिया क्या नाम है बेटा?

श्रीमान् मेरा नाम राघव मिश्रा है आप अनीश के पैरेन्ट्स हैं मेरा प्रणाम स्वीकार करें। उसकी यह संस्कारिकता देखकर दंग रह गया। इंगलिश स्कूल में पढ़ने वाला छोटा बच्चा इतनी शुद्ध भारतीय संस्कृति आश्चर्य को छुपाते हुये मैंने पूछा– ‘‘राघव तुम्हारे माता-पिता कहाँ हैं, उनसे मिलाओगे नहीं?’’

मिलाऊँगा अंकल पर थोड़ी देर बाद क्योंकि अभी मेरे नानू आये थे छोड़ गये हैं। मम्मी काम से सुबह से ही बाहर चली गई है। ग्यारह बजे तक आयेगी, कह कर चुप हो गया।

मेरे मन में फिर आश्चर्य हुआ, इसने अपने पापा के विषय में कुछ नहीं कहा, मुझसे रहा नहीं गया मैंने पूछा तुम्हारे पापा?

मेरे पापाबिना कुछ कहे ही चुप हो गया। उसका चेहरा तमतमा गया जैसे किसी सोये नाग को छू लिया हो वह फुफकारने लगे।

उसे देखकर मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कि मैं फिर पूछूँ।

परन्तु मेरे मन में बड़ी उथल-पुथल मच गई, कई प्रश्न जन्म लेने लगे। कौन है इसका पिता, पिता के परिचय पर क्यों चुप हो गया, चेहरा क्यों तमतमा गया। यह लड़का अपने पिता के घर क्यों नहीं रहता। इसकी माँ क्या करती है आदि। ढेर सारे प्रश्नों के जाल मुझे उलझाने लगे। मैंने आइसक्रीम वाले को बुलाया खरीदी बच्चे को दिया। राघव को भी दिलाने लगा वह नहीं ले रहा था बड़ा जोर देने पर लिया। बेंच पर बैठकर कुछ देर बाद हमने फिर पूछा राघव तुमने पापा के विषय में कुछ नहीं बाताया, तुम्हारी मम्मी क्या करती हैं। ढेर सारे प्रश्न कर दिये।

राघव ने बड़ी ही शालीनता से कहा अंकल यह सब क्यों पूछ रहे हैं। न जाने क्यों मुझे अच्छा नहीं लगता।

न जाने क्यों तुम्हें देखकर जानने की इच्छा हो गई। सकुचाते हुये मैंने कहा जैसे कोई गलती हो गई।

राघव कुछ देर चुप रहा फिर कुछ सोचते हुए बताने लगा अंकल मेरे पापा यहीं इलाहाबाद में रहते हैं यहीं पर मेरे दादा, दादी, चाचू, बुआ भी किराये का मकान लेकर रहते हैं, दादा वकील हैं, पापा डॉक्टर हैं चाचू बी-टेक कर रहे हैं, हमारी बुआ भी डॉक्टरी पढ़ रही हैं। हमारे दादा साहित्यकार भी हैं। मेरी मम्मी न जाने क्यों एक दिन पापा का घर छोड़कर मुझे लेकर नाना के घर चली आई तब से नहीं गई। कई दिनों तक पापा भी नहीं आये। एक दिन पापा आये मम्मी से मिले फिर आते रहे कभी मैं भी पापा के साथ दादा-दादी के घर चला जाता मिल कर आ जाता। एक दिन मम्मी पापा और मैं साईं के मन्दिर पर गये थे, पापा ने कहा ऐसे कब तक चलेगा, मैं अपने माता-पिता को छोड़ नहीं सकता वैसे भी मेरे मम्मी-पापा अलग रहने को राजी हैं परेशानी यह है कि अलग रहने पर खर्च कैसे चलेगा। मम्मी ने कहा था मैं उस घर में नहीं जाऊँगी। तुम्हें अकेले रहना है तो तुम्हारे साथ रह सकती हूँ, परन्तु वहाँ नहीं रह सकती। मेरे पापा, भैय्या मेरा खर्च चला लेंगे, पापा कुछ नहीं बोले। नाना की तबियत खराब थी घर पर कोई नहीं था नाना ने पापा को फोन किया था पापा आये थे डॉक्टर को दिखाया था सब ठीक-ठाक था। बड़े मामा दिल्ली में रहते हैं दवा की फैक्ट्री चलाते हैं आये थे मम्मी से बात किया क्या तुम्हें उस घर नहीं जाना है मम्मी ने कहा वे लोग सभ्य नहीं हैं कोई सभ्यता नहीं है गरीब हैं पुराने खयाल के हैं उनके यहाँ चारपाई तक नहीं है सोने तक को नहीं मिलता वहाँ, मुझे घुटन होती है मैं वहाँ नहीं जाऊँगी। मामा ने पापा को फोन पर कहा था तुम्हें यदि मेरी बहन को अलग लेकर रहना है तो रिश्ता ठीक, नहीं तो सारा सामान वापस कर दो मैं अपनी बहन का गु़जारा कर लूँगा। पापा ने शायद यही कहा था मैं भी अपने मां-बाप को नहीं छोड़ सकता, अगर आपकी बहन को रहना है तो मेरे साथ मेरे माता-पिता के घर रहना पड़ेगा। मैं जैसी स्थिति में रहूँगा, उन्हें रहना होगा। इसी बात पर मामा ने फोन पर ही पापा को बड़ी भद्दी-भद्दी गालियाँ दिया था। माँ-बहन की गाली तथा पापा को हिजड़ा तक बना डाला था। इसके बाद हमारे नाना ने भी किसी मर्यादा का ध्यान नहीं दिया जब कि मम्मी गलत थी, मेरे पापा बहुत ही सीधे हैं कभी मम्मी को कुछ नहीं कहा। उस दिन नाना दादा के घर गये थे वे भी वहाँ कोई अच्छी बात नहीं कहकर आये। यह बात पापा को दादा को, बहुत बुरी लगी थी। पापा आना छोड़ दिये।

कुछ दिन बाद बड़े मामा फिर दिल्ली से आये उस दिन उन्होंने अपनी गाड़ी लिये उस पर नाना, मामा, मम्मी दो और लोगों को लेकर पापा के घर गये थे वहाँ पर उन लोगों ने पापा को मारा-पीटा, गाली दी, मम्मी ने भी इन लोगों का साथ दिया। पापा की दवा की आलमारी उनके घर का सारा सामान इधर-उधर तोड़ दिया था। मेरे पापा, दादा, सभी लोग बहुत अच्छे हैं दादा तो साहित्यकार हैं, लोग उनका बड़ा सम्मान करते हैं इन लोगों ने उनका बहुत अपमान किया। जब मेरी मम्मी लौटकर आयी थी मैंने पूछा था क्या हुआ मम्मी? मम्मी ने गुस्से में कहा था तुम्हारा बाप मेरे स्टेटस का नहीं था मैंने उसकी हत्या कर दी। मेरी माँ के हाथ खून से सने थे मैं डर गया था। नहीं तो पूछता क्या दोष था जो तुमने उनकी हत्या की। कहते-कहते राघव का चेहरा तमतमा आया था फिर चुप हो गया। कैसे पूछता छोटा हूँ कुछ सोचते हुए पूछूँगा तो जब मैं बड़ा हो जाऊँगा। यहाँ पर मेरा नाम पापा ने ही लिखाया था। अब वे नहीं आते, मिलते भी नहीं, कहते-कहते राघव रो पड़ा था। मेरी भी आँखें छलक आई थी, मेरी पत्नी तो रो पड़ी थी। वह औरत अपराधिनी है कहकर आँसू पोछ लिया था। अगर ऐसा है तो वह भारतीय नारी के नाम पर कलंक है उसके भाई-बाप कैसे हैं मेरे मन में यह सोच आकर रह गई।

बेटा तुम्हारे पापा का नाम क्या है?

डॉ. अनुराग मिश्रा, मेरे दादा हैं सत्य प्रकाश मिश्रा कहकर राघव खामोश हो गया। नाम सुनकर मैं आवाक रह गया अरे यह तो मेरे पड़ोसी हैं पर कुछ कह नहीं पाया।

शाम को मिश्रा जी के घर पर बैठा था चाय आ गई थी प्याली उठाते हुये मिश्रा जी ने कहा था राजेन्द्र मैंने जीवन का लम्बा रास्ता तय किया है कभी थका नहीं पर अब थकान लगने लगी है मैंने अपने बच्चों को शिक्षा दिया, संस्कार दिया पर रिश्ते बनाने में चूक हो गई, मेरी बहू न जाने किस संस्कार में पली थी वह हमें स्वीकार नहीं कर सकी, उसके ऊपर उसके माँ-बाप-भाई का संस्कार हावी रहा, वह उससे उबर नहीं पाई। यूं कहिये उसके माँ, बाप, भाई उसे समझा नहीं पाये। दोष हम पर लगा गये, जबकि दोष उनमें था और है। उसका बड़ा लड़का अपनी पहली पत्नी छोड़ चुका है, दूसरी जाति की लड़की से प्रेम-विवाह किया है, वह संस्कार क्या जाने इस बात को मेरी बहू समझ नहीं पाई, उस अपने भाई के व्यक्तित्व को आदर्श मानती है। फिर भी यह मेरे किसी प्रारब्ध का फल है जो मिल रहा है। कहकर मिश्राजी शून्य में ताकते रहे। रात गहराती जा रही थी दूर प्राची में चाँद के आने की सूचना दिशाओं ने दिया था मैं भी अपने कमरे पर लौट आया था एक नये विहान की प्रतीक्षा में।

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